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________________ शान-प्रदीपिका। उदयादिचतुष्कं तु जलकेन्द्रमुदाहृतम् ॥१५॥ तच्चतुर्थ चास्तमयं तत्तुयं वियदुच्यते । तत्तुर्यमुदयं चैव चतुष्केन्द्रमुदाहृतम् ॥१६॥ लम से चौथे स्थान को जलकेन्द्र कहते हैं। चतुर्थ स्थान से जो स्थान चौथे हैं उसे अस्तमय कहते हैं। सप्तम स्थान से चतुर्थ स्थान को 'वियत्' यानी दशम कहते हैं। उससे भी चौथे को उदय या लग्न कहा जाता है। ये चारों स्थान केन्द्र कहे जाते हैं। चिन्तनायां तु दशमे हिबुके स्वप्नचिन्तनम् । छत्रे मुष्टिं चयं नष्टमात्येश्चारूढतोऽपि वा ॥१७॥ चिन्ता के कार्य में दशम स्थान से और स्वप्नचिन्तन में चतुर्थ स्थान से तथा छत्र मुष्टि वृद्धि नष्टपाप्ति इत्यादि बातों का शान लग्न से होता है। चापोक्षकर्किनकास्ते पृष्ठोदयराशयः । तिर्यगदिनबलाः शेषा राशयो मस्तकोदयाः ॥१८॥ धनु, वृष, कर्क, मकर-ये राशियाँ पृष्ठोदय हैं। और दिवावली अर्थात् सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और कुंभ ये शीर्षोदय हैं। शेष राशियाँ भी शीर्षोदय हैं (वृहज्जा तक के अनुसार मीन और मिथुन उभयोदय हैं । ) . अर्काङ्गारकमन्दास्तु सन्ति पृष्ठोदया ग्रहाः । राहुजीवभृगुज्ञाश्च ग्रहाः स्युमेस्तकोदयाः॥१६॥ उद्यतस्तिर्यगेवेन्दुः केतुस्तत्र प्रकीर्तितः । सूर्य, मंगल और शनि पृष्ठोदय ग्रह, राहु, वृहस्पति, शुक्र और बुध मस्तकोदय तथा केतु और चंन्द्र तिर्यगुदय ग्रह हैं । उदये बलिनौ जीवबुधौ तु पुरुषौ स्मृतौ ॥२०॥ अन्ते चतुष्पदौ भानुभूमिजो बलिनो ततः। चतुर्थे शुक्रशशिनौ जलराशौ बलोत्तरौ ॥२१॥ अर्यही बलिनी चास्ते कीटकाश्च भवन्ति हि । Aho ! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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