SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य की देह में, रंग से उत्तम स्निग्धता (चिकनाई, आव ) है, स्निग्धता से भी उत्तम स्वर है और स्वर ( आवाज़ ) से भो उत्तम सत्त्व हैं। (सत्त्व वह वस्तु है जिसके कारण मनुष्य की सत्ता है, जिसके न रहने से मनुष्यत्व ही नहीं रहता) इसी लिये सत्त्व ही सब का प्रतिष्ठा-स्थान हैं। नेत्रतेजोऽतिरक्तच नातिपिच्छलपिंगलम् । दीर्घबाहुनिभैश्वयं विस्तीर्ण सुन्दरं मुखम् ॥१२॥ आखों में तेज और गाढ़ी लालिमा का होना तथा बहुत चिकनाई और पिंगल वर्ण (मांजर-पन) का न होना, भुजाओं का दीर्घ होना, और मुंह का विशाल और सुन्दर होना, ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं। उरोविशालो धनधान्यभोगी शिरोविशालो नृपपंगवः स्यात् । कटेविशालो बहुपुत्रयुक्तो विशालपादो धनधान्ययुक्तः ।१३ जिसकी छाती चौड़ी हो वह धन धान्य का भोक्ता, जिसका ललाट चौड़ा हो यह राजा, जिसकी कमर विशाल हो वह बहुत पुत्रोंवाला तथा जिसके चरण विशाल हों वह धनधान्य से युक्त होता है। वक्षस्नेहन सौभाग्यं दन्तस्नेहेन भोजनम् । त्वचःस्नेहेन शय्या च पादस्नेहेन वाहनम् ॥१४॥ . वक्षःस्थल (छाती) को विकनाई से सौभाग्य, दाँत को चिकनाई से भोजन, चमड़े की चिकनाई से शय्या और चरणों को चिकनाई से सवारी मिलती है। अकर्मकठिनौ हस्तौ पादौ चाध्वानकोमलौ। तस्य राज्यं विनिर्दिष्ट सामुद्रवचनं यथा ॥१५॥ विना काम काज किये भी जिसका हाथ कठिन (कड़ा) हो, और मार्ग चलने पर जिसके पैर कोमल रहते हों, उस मनुष्य को इस शास्त्र के कथन के अनुसार, राज्य मिलना चाहिये। दीर्घलिंगेन दारिद्र यम् स्थूललिंगेन निर्धनम् । कृशलिंगेन सौभाग्यं हस्वलिंगेन भूपतिः ॥१६॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy