SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्टम् जिनेन्द्राय नमः सामुद्रिका-शास्त्रम् आदिदेवं नमस्कृत्य सर्वज्ञ सर्वदर्शिनम् । सामुद्रिकं प्रवक्ष्यामि शुभांगं पुरुषस्त्रियोः ॥१॥ सबके ज्ञाता, सब कुछ देखने वाले, आदि देव, (ऋषभदेव ) परमात्मा को नमस्कार करके, पुरुष और स्त्रियों के शुभ लक्षणों को बताने वाले सामुद्रिक शास्त्र को कहता हूँ। पूर्वमायुः परीक्षेत पश्चाल्लक्षणमादिशेत् । आयुहीननराणां तु लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥२॥ सामुद्रिक शास्त्र के द्वारा शुभाशुभ फलों के विवेचन करने वाले पुरुष को पहले प्रश्नकर्ता की आयु की परीक्षा कर अन्य लक्षणों का आदेश करना चाहिये। क्योंकि जिसकी आयु ही नहीं है वह अन्य लक्षण जान कर क्या करेगा ? वामभागे तु नारीणां दक्षिणे पुरुषस्य च । निर्दिष्टं लक्षणं चैव सामुद्र-वचनं यथा ॥३॥ इस शास्त्र के वचन के अनुसार, पुरुष के दाहिने और स्त्री के वांये अंग के लक्षण का निर्देश करना चाहिये। पंचदीर्घ चतुर्ह स्वं पंचसूक्ष्मं षडुन्नतम् । सप्तरक्त त्रिगम्भीरं त्रिविस्तीर्णमुदाहृतम् ॥४॥ जैसा कि आगे बताया है, मनुष्य के पांच अंगों में दीर्घता ( बड़ा होना ) चार अंगों में हस्वता ( छोटाई ), पांव में सूक्ष्मता ( बारीकी) छः अंगों में ऊचाई, सात में ललाई, तीन में गंभीरता ( गहराई ) और तीन में विस्तीर्णता ( चौड़ाई ) प्रशस्त कही गई है। बाहुनेत्रनखाश्चैव कर्णनासास्तथैव च । स्तनयोरुन्नतिश्चैव पंचदीर्घ प्रशस्यते ॥५॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy