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________________ मानप्रदीपिका। उच्चन दृष्टे युक्ते वा अर्ध्यवृद्धिर्भविष्यति । नीचेन युक्ते दृष्टे वा अयक्षयमितीरितम् ॥१॥ मित्रस्वामिवशात् सौम्यामित्रं ज्ञात्वा वदेत्सुधीः । शुभग्रहयुते दृष्टे वय॑वृद्धिर्भविष्यति ॥२॥ उच्च से दृष्ट किंवा युक्त होने पर अर्थ ( अन्न का भाव ) को वृद्धि और नीच से युत वा दृष्ट होने पर क्षति होती है। इस वियर में विद्वान को मित्र, शत्रु, स्वामी, शुभ, पाप का पूर्ण विचार करना चाहिये। शुभ ग्रह से युत दृष्ट होने पर अर्ध ( दर) की वृद्धि होगी। पापग्रहयुते दृष्टे त्वयंवृद्धिक्षयो भवेत् । नीचशत्रुक्शान्न्यूनमय॑निर्णयमोरितम् ॥३॥ लम यदि पाप ग्रह से युन या दृष्ट हो तो दर को बढ़वारी घटेगो नोच और शत्रु के पश से इसकी न्यूनता का निर्णय कहा जाता है । इत्ययकाण्डः जलराशिषु लग्नेषु जोवशुक्रोदयो यदि । पोतस्योगमनं ब्र यादशुनश्चन्न सिद्वयति ॥१॥ लग्न में जल राशि हो और उसमें बृहस्पति और शुक पड़े हों तो जहान शीत्र लोटेगा। यदि अशुभ ग्रह हों तो काम सिद्ध नहीं होगा। आरूढकेन्द्रलग्नेषु वीक्षिनेष्वशुभग्रहैः ।। पोतभंगो भवति च शत्रुभिर्वा तथा वदेत् ॥२॥ माइट, केंद्र ( १, ४, ७, १० ) को यदि अशुभ ग्रह देखते हों तो शत्रुओं ने जहान लूट लिया है-ऐसा-ऐसा बताना। अदृष्टस्योदये लग्ने शुभे नौका ब्रजेत्स्वयम् । तद्ग्रहे तु यथा दृष्टे तथा नौदर्शनं भवेत् ॥३॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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