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________________ ज्ञानप्रदीपिका | ग्रहाः स्वक्षेत्रमायान्ति यावत्तावत् फलं वदेत् । शुभग्रहवशात् सौख्यं पीडां पापग्रहैर्वदेत् ॥ १४॥ ग्रह जितने दिन में अपने क्षेत्र में आवें उतने दिन में समाचार आना चाहिये । शुभ ग्रह हो तो शुभ और अशुभ ग्रह हो तो अशुभ फल बताना चाहिये । सप्तमाष्टमयोः पापास्तिष्ठन्ति यदि च ग्रहाः । प्रोषितो हृतसर्वस्वस्तत्रैव मरणं व्रजेत् ॥ १५॥ यदि सप्तम और अष्टम में पापग्रह हों तो प्रवासो विदेश में ही हृतसर्वस्व हो कर • मर जाता है। षष्ठे पापयुते मार्गगामी बद्धो भविष्यति । चरराशिस्थिते पापे चिरेणायाति निश्चितम् ॥ १६ ॥ बठ्ठ यदि पाप ग्रह हो तो प्रवासी पुरुष मार्ग में ही बद्ध हो जाता है। यदि पाप ग्रह चर राशि में स्थित हो तो वह चिरकाल में आवेगा । बलावलवशेनैव शुभाशुभनिरूपणम् । इस प्रकार ग्रहों में बलाबल के विचार से शुभाशुभ फल का निरूपण होता है । इति यात्राकाण्डः जलराशिषु लग्नेषु जलग्रह निरीक्षणे । कथये वृष्टिरस्तीति विपरीते न वर्षति ॥ १ ॥ लग्न में जल राशि हो और जलग्रह देखते हों तो वृष्टि होगी अन्यथा नहीं । जलराशिषु शुकेन्द्र तिष्ठतो वृष्टिरुत्तमा । जलराशिषु तिष्ठन्ति शुक्रजोवसुधाकराः ॥२॥ आरूढोदयराशि चेत पश्यन्त्यधिकवृष्टयः । जलराशि में यदि शुक्र, तथा चन्द्र हो तो अच्छी वृष्टि होगी ! और जल राशि में शुक्र, बृहस्पति चन्द्र हों और लग्न और आरूढ़ को देखते हों तो अधिक वृष्टि होगी । Aho! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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