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________________ शानप्रदीपिका। यदि पाप ग्रह और शुभ ग्रह दोनों का योग केन्दु स्थान में हो तो अवश्य शल्य हैं ऐसा कहना चाहिये। यदि शनैश्चर देखता हो तो देवता का निवास कहना, मंगल देखता होतो राक्षस का और यदि केन्द्र में चन्द्रमा मंगल के साथ मंगल कोष्ठ में पड़ा हो तो घोड़े का शल्य वहां पर है ऐसा कहना चाहिये। शुक्रस्थे तक्षके कोष्ठे रौप्यश्वेतशिला पिता (2)। पञ्चषड्वसुभूतानि सपादकं तथैव च ॥१२॥ सार्धरूपाक्षोरवक्ष (2) सूर्यादीनां क्रमात् स्मृताः । खशल्यगादनैव (?) क्रूरेण कथयेत् सुधीः ॥१३॥ यदि केन्द्र में शुभ चन्द्रमा संयुक्त होकर तक्षक कोष्ठ में शुभ बैठा हो तो चांदी या सफेद पत्थल उस भूमि में होता है। सूर्यादि ग्रहों के लिये क्रम से पांच छः आठ पांच सवा एक डेढ़ और चार यह अंक होते हैं। शल्य विचार में इतनी इतनी गहराई पर शल्य का निर्देश करना चाहिये। इति शल्यकाण्डः अथ वक्ष्ये विशेषेण कूयकाण्डविनिर्णयम् । आयामे चाष्टरेखाःस्युस्तिर्यग्र खास्तु पंच च ॥१॥ अब इसके वाद कूपकाण्ड के निर्णय को कहते हैं' खड़ी आठ रेखा और पड़ी पांच रेखायें करनी चाहिये। .... एवं कृते भवेत् कोष्ठा अष्टाविंशतिसंख्यकाः । इस रीति से करने से अठ्ठाइस काष्ठ का एक चक्र बनाया जाता है। प्रभाते प्राङ्मुखो भूत्वा कोष्ठेवतेषु बुद्धिमान् । चक्रमालोकयेद्विद्वान् रात्रा दुत्तराननः ॥२॥ बुद्धिमान् को चाहिये कि प्रातः काल से आधी रात तक प्रश्न देखना हो तो चक्र को पूर्वाभिमुख और आधी रात के बाद उत्तराभिमुख हो कर इस चक्र को देखना चाहिये। Aho ! Shrutgyanam
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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