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________________ प्रध्रुवाधिकारः । गुरुध्रुवविधि:शताहतोऽधः खनवाप्तनेत्रसूर्य्याढ्य जीवोऽब्दनखांशयुक्तः ॥ ५॥ सं० टी० - अब्दपिण्डः शताहतः शतगुणितः, अधः स्थानद्वये स्थाप्यः तले खनवाप्तः लब्धेन सहितः नेत्र सूर्यास्तैरुपरियोज्यः पुनरब्दपिण्डः नखांशयुक्तः गुरुध्रुत्रको भवति ( द्वादशशतेन शेषितोऽत्रापि ज्ञातव्यः ॥ ५॥ " २५ भा० टी० - शास्त्राब्द को १०० से गुणि दो स्थान में स्थापित करें, एक स्थान में ९० का भाग देने से जो अंशादि फल मिलै वह दूसरे स्थान में युक्त करके उसमें १२२ और युत करै, फिर शास्त्राब्द में २० का भाग देने से जो लब्ध मिलै वह भी उसी में युक्त करने पर ( उसमें १२०० का भाग देने से जो शेष बचै वही ) मध्यम वृहस्पति का अंशादि ध्रुवा होता है ॥ १ ॥ Aho! Shrutgyanam उदाहरण-शाखाब्द ८१२ को १०० से गुणा तो ८१२०० हुए इसको दो जगह रक्खे एक जगह ९० का भाग दिया तो लब्ध अंशादि ९०२ । १३ । २० मिले, इसको दूसरे जगह घरे हुए ८१ २०० में युत किया तो ८२१०२ १३।२० हुए, इसमें १२२ युक्त किया तो ८२२२४|१३।२० हुए, फिर शास्त्राब्द ८१२ में २० का भाग दिया तो लब्ध अंशादि ४०/३६।० मिले, इसको ८२२२ ४|१३|२० में युत किया तो ८२२६४ । ४९।२० हुए, इसमें १२०० का भाग दिया तो शेष मध्यम वृहस्पति का अंशादि ध्रुवा ६६४ |४९| २० हुआ ॥ ५ ॥
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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