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________________ भास्वत्थाम् भा० टी०-इष्टशाका में पुस्तकीय शक तब तक घटावै जब तक कि आगे का पुस्तकीय शक न आवै । यदि इष्ट शक पुस्तकीय शक के बाद का होय तो उस इष्ट शक के पूर्व जो पुस्तकीय शक होय उस को इष्ट शक में घटाये। यदि इष्ट शक और पुस्तकीय समान (बराबर ) होय तो पुस्तकीय शक ही से कार्य हो जाता है, या उस इष्ट शक के समानता करने वाले पुस्तकीय शक के पूर्व जो पुस्तकी शक होय उसको इष्ठ शक में घटा के बनावै । इष्ट शक में पुस्तकीय शक घटाने से जो शेष मिले उसके तुल्य शेष कोष्ठ का और पुस्तकीय शक के कोष्ठ का अंक एक जगह जोड़ने से संवत्सर वर्षादिक होता है । * पंच तारा में भी उक्त क्रिया करने से अंशादि ध्रुवा होता है । उदाहरण- इष्ट शाका १८४० को पुस्तकीय शाका १८३३ में हीन किया तो शेष ७ बचे, इस शेष के नीचे का वर्षादि ७१०।२९।३४। ५ है और पुस्तकीय शाका के नीचे का वर्षादि ५६।९।१६।२७१५१ है, इन दोनों को जोड़े तो इष्ट शका में संघत्सर वर्षादिक ६३।९। ४६।९।१६ हुए, वर्ष ६३ हैं इससे इसको ६० से शेषित किया तो संवत्सर वर्षादिक ३।९।४६।१।५६ हुए । जब तक इष्ट शाका १८५७ न आवै तब तक इष्ट शाका में पुस्तकीय शाका १८३३ ही घटावे, * शुद्धि प्रत्येक वर्ष २०७ घटती है। सूर्य के ध्रुवा में ११५५ हीन करने से, चन्द्रध्रुवा में ९१०।३० और चन्द्र केन्द्रध्रुवा में ६७९ । ११ युत करने से आग्रिम वर्ष का ध्रुवा होता है । जिस वर्ष शुद्धि चक्र से संवन्ध करती है उस वर्ष उक्त ग्रहों का ध्रुवा, न्यूनाधिक होता ह । और राहु कलादि ३।१०।४५ सदा न्यून होता है, जिसके स्थान पर इस ग्रन्थ में प्रति वर्ष का २९०।२४ कलादि लिखा है (और यह प्रति वर्ष एतना घटता है ) इसी कारणों से उक्त ग्रहों की सारणी नहीं बनाई गई है। Aho! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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