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________________ परिलेखाधिकारः। १५५ "ग्रासं नखहतं कृत्वा विवमानेन भजितम् । लब्धं विंशोपका ज्ञेया ग्रहणे सूर्यचन्द्रयोः” ॥१॥ "धूम्रः कृष्णः पिङ्गलोऽल्पार्धसर्व ग्रस्तश्चन्द्रोऽस्तु कृष्णः सदैव"। +"स्थान त्रये स्थाप्य कलेगताब्दा *उदाहरण- चन्द्रमा का ग्रास ४१ । ७ । ३८ को २० से गुणा किया तो ८२२ । ३३ । ४० हुए इस में विम्ब ९९ का भाग दिया तो लब्ध ८ विंशोपका हुआ। सूर्य का पास ३३ । १६ । ।८ को २० से गुणा तो ६६५३६ हुए इपमें विम्व १०३ का भाग दिया तो लब्ध ६ विंशोपका हुआ। __ +उदाहरण-चन्द्रग्रहण-संवत् १९६९ का है, यहां कलिका गता. ब्द संख्या ५०१३ है इसको तीन जगह में स्थापित किया। तीसरे जगह में ३१ को भाग दिया ता लब्ध १६१ मिले इसको दूसरे स्थान के अंक ५०१३ में घटाया तो ४८५३ हुए इसमें १८ का माग दिया तो लब्ध २६९ मिले इस को प्रथम स्थान में स्थापित किये हुये अंक ५०१३ में युत किया तो १२८२ हुए इस कोर से गुणा तो १०५६४ हुए इसमें को युत किया तो १०५७० हुए इस में ७ का भाग देने से शेष ७ बचे इस से सातवां पर्वाधिप यम हुआ ॥ सूर्य ग्रहण-संवत् १९६८ का है यहाँ कलिगतान्द संख्या १०१२ है, इसको तीन जगह रक्ख तीसरे जगह के अंक २०१२ में ३१ का भाग दिया तो लब्ध १६१ मिले इसको दूसरे जगह में रक्खे हुए ५०१२ में हीन किया तो ४८५१ हुए इस में १८ का भाग दिया तो लब्ध२६९ मिले इस को पहले जगह में रखे हुए ५०१२ में युत Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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