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________________ १३२ भास्वत्याम् । की राशि दूर कर दी थी उस राशि के अपने देश के उदय से उन भुक्त भोग्य अंश आदि को गुणाकर के उस में ३० का भाग देने से मुक्त भोग्यकाल होता है, फिर इष्ट काल के घड़ी को पलकर के उसमें ( भुक्त) भोग्यकाल को घटाचे घटाने से जो शेष बचै उस में सायन सूर्य के राशि के बाद की जेतनी गशि घटै उनको घटा देवे फिर ऐसे घटाने से जो अंक शेष रहे उसको ३० से गुण के उस में अशुद्धोदय अर्थात् घटी हुई राशियों के आगे की जो राशि हो उस के मान से भाग देवै उससे जो अंश आदि फल मिले उस में, जिस राशि के मान तक का उदय इष्ट पल में घटा होय उस राशि का मेष से जितनी संख्या होय वह संख्या को राशि के स्थान में युक्त करे फिर उसमें अयनांशा घटाने से स्पष्ट लग्न होता है । ( जो भुक्त लग्न बनाव तो जिस राशि के मान से गुणा करै उस उदय से पिछले उदय को घटावे और बाद पूर्ववत् क्रिया करके अंशआदि फल लेके फल में अशुद्ध लग्न राशि के अस्थान पर युक्त कर उस राशि के संख्या में से एक अंक की संख्या घटा कर अंश आदि को घटावै फिर शेष में अयनांशा को घटाने से स्पष्ट लग्न होता है) ॥ ८ ॥९॥ उदाहरण-सं० १९६८ शाका १८३३ वैशाख शुक्ल १३ वृहस्पति के सूर्योदय से इष्ट घड़ी ५ पल ११ है, इस समय पर लग साधना है, सूर्य ०।२६.६४।५७ इस में अयनांशा २३।३ को युत किया तो सायन सूर्य १।१९ ५७५७ हुआ, इसके राशिवृष को अलग रक्ख दिया भुक्त अंशआदिकों को३० में घटाया तो भोग्यांश आदि २०१२।३ हुआ, इसको वृष के उदय २५३ से गुणा किया तो २५३८॥३८१३९ हुए इसमें ३० का भाग दिया तो भोग्य काल ८४।३७।१७ हुआ, इष्ट Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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