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________________ १०५ प्रहस्पष्टाधिकारः । "इष्टनाडीपरापूर्व मुक्तिना षष्ठिभाजिता । लब्धांशादि धनोनं स्युर्ग्रहास्तत्कालिकाः स्फुटाः"॥१॥ भा० टी०-स्पष्ट मन्द गति को शीघ्र गति में घटाने से शीघ्रकेन्द गति होती है, इस शीघ्रकेन्द्र गति को खण्डा के अन्तर से गुणि के १०० का भाग देने से जो फल मिलै उसको अंतर धन होय तो मन्द मुक्ति में युक्त करने से ऋण होय तो हीन करने से स्पष्टगति होती है । वक्री ग्रह होय तो फल में ही मन्द गति को घटाने से स्पष्ट गात होती है (शीघ्र केन्द्र में ५, ६, ७, यह खण्डा मिलने पर वक्री पर ध्यान रक्खै और जहां शीघ्र. केन्द्र के पंचमादि राशि होई वहां केन्द्रगति को ३ से गुणा करके तब उसे शीघ्र खंडान्तर से गुणा करके भाजक का भाग देव ) ॥ १५ ॥ उदाहरण- मंगल की शीघ्रगति ३ । १७ में मन्दस्पष्ट गति २। ४ । ३८ को घटाया तो मङ्गल की शीघ्र केन्द्रगति ११२।२२ हुई, इसको खंडा के अन्तर ऋण २३ से गुणा किया तो २७१४४।२६ हुए इसमें १०० का भाग दने से शीघ्रफल ०।१६।३९ मिले, इसको खंडा के अन्तर धन होने से मन्दगति २। ४ । ३८ में मिलाया तो मङ्गल की स्पष्टगति २ । ११ । १७ हुई । बुध की शीघकेन्द्र गति १० । ५ । ५० गुरु की ३ । १ । ३० शुक्रकी २ । ४ । ४६ शनि की ३ । । २० शीघ्रकेन्द्र गति हुई । बुध का शीघ्रफल ॐ श्रीसंवत् १९६८ शाका १८३३ वैशाख सुदि १३ वार वृहस्पति के सूर्योदय से इष्ट ५ । ११ पर स्पष्ट करना है, इष्ट ५ । ११ को सूर्य की गति ५८ । १४ से गुणा करके उसमें ६० का भाग देने से फल ०।५।१। १९ मिले, इसको स्पष्ट सूर्य ०।२६।५११५६।० में युत कियातो तत्कालिक सूर्य ०।२६ । ५६ । ५। १९ हुआ | Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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