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________________ ८८ भास्वत्याम् । क्रमशः ११ । १९ । २२ । १९ । ११ खण्डाक होता है ( अर्थात् एक लब्ध में ११ दो लब्ध में १९ तीन लब्ध में २२ चार लब्ध में १९ पांच लब्ध में ११) भुक्त खण्डा के आगे का अंक भोग्य खण्डा कहाता है, भुक्त भोग्य खण्डा के अन्तर (भुक्त खण्डा से भोग्य खण्डा अधिक होय तो धन, न्यून होय तो ऋण संज्ञक अंतर होता है उस ) से शेष को गुणा कर १०० का भाग देने से जो फल मिलै उसको खण्डान्तर धन होय तो भुक्त खण्डा में युक्त करने से खण्डान्तर ऋण होय तो हीन करने से मन्द फल होता है। भौमादिकों के मन्द फल का क्रमशः १७१७।८।३।१२ यह गुणक है । मन्द फल को गुणक से गुणकर १० के भाग से मिले फल को मन्द केन्द्र छः राशि से न्यून होय तो दूसरे जगह रक्खे हुए मध्यमग्रह में घटाने से और मन्द केन्द्र छः राशि से अधिक होय तो दूसरे जगह रक्खे हुए मध्यमग्रह में मुक्त करने से मन्दस्पष्ट होता है। मन्दस्पष्ट ग्रह दो जगह रक्खकर एक जगह शीघ्रोच्च घटाने से शीघ्र केन्द्र होता है (न घटै तो मन्द केन्द्र में १२०० युक्त करिके घटा) वह शीघ्र केन्द्र छः राशि से न्यून होय तो उसी में, छ: राशि से अधिक होता उसको १२०० में घटाकर उस में १०० का भाग देने से जो लब्ध मिलै उस लब्ध के तुल्य भुक्त खण्डा उसके आगे का भोग्य खण्डा होता है दोनों के अन्तर से शेष को गुणि १०० का भाग देने से जो फल मिलै उस को भुक्त खण्डा में अन्तर ऋण होय तो घटाने से और यदि अन्तर धन होय तो युक्त कर देने से शीघ्र फल होता है। यदि १०० के भाग से ५ वाँ खण्डा मिले तो शेष को तीन से गुणि १०० के भाग से मिले फल को ५ में युक्त करभे से Aho! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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