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________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ ॥ अथ ग्रहोपरिशकुनम् ॥ आइच्चेनथिलाहो । सोमे रिद्धीय मंगलेमरणम् ॥ बुध गुरु सुक्के लाहो । सनिराहूरोरवं मरणम् ॥ १॥ अर्थ:-विंशति यंत्रमा सूर्य होय तो लाभ न थाय, चंद्र होय तो ऋद्धि प्राप्त थाय, मंगल होय तो मरण प्राप्त थाय, बुध गुरु शुक ओ त्रण होय तो लाभ थाय, अने शनि तथा राहू होय तो रौरव [ भयंकर ] मरण थाय ॥१॥ बुधे चंद्रोतरे मार्गे-समीपे गुरुशुक्रयोः ॥ भौमे रखौ तथा दूरे । आपदाहु शनैश्चरे ॥२॥ अर्थ:-बुध अने चंद्र होय तो अतरे- समुद्रमा प्रयाण थाय, गुरु अने शुक्र समीप होय तो मार्गमां प्रयाण थाय, मंगळ अने सूर्य होय तो दूर देशमां गमन थाय, अने राहु तथा शनि होय तो आपदा प्राप्त थाय.॥२॥ आदित्ये दृष्टि दोषःस्यात् । सौमे शरीरसंभवः ॥ भौमेच डाकिनीदोषः । गोत्रदेव्याबुधेपुनः ॥३॥ अर्थ:-पुनः सूर्य होयतो द्रष्टि दोष थाय, चंद्रहोय तो शरीरसंबंधि दोष प्राप्त थाय, मंगल होयतो डाकिनी दोषथाय, अने बुध होयतो गोत्र देवीनो दोष प्राप्त थाय ॥ ३॥ गुरौचक्षेत्रपालस्य । शुक्रेचजलमातरः॥ शनैश्चरे भूतदोषः । पितृदोषश्चराहुजः ॥४॥ अर्थः-गुरु होयतो क्षेत्रपालनो दोष प्राप्त थाय, शुक्र होय तो जलदेवी नो दोष गणाय, शनिहोयतो भूतदोष, अने राहुथी पितृदोष प्राप्त थाय छे॥४॥ ॥ इति ग्रहोपरिशकुनम् ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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