SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ अने कोईस्थाने अह पुढवीओ इत्यादि गमक सूत्रो [ सूत्रना आलापक] कह्या छ तथा ज्योतिषमते अष्टमीनी भद्रा कृष्णपक्षनी सप्तमीमां अन्त पामेछ. तथा अतिवक्रा नगाष्टमे प्रमाणे ७-८ अंकनुं अकत्व छे, अम जाणवू. हवे ९ तथा १० अंकनुं ओकत्व दर्शावाय छे ते आ प्रमाणे-नवमे दशमे भानौ, जायते सरला गतिः [सूर्य नवमे अने दशमे (लग्नकुंडलीमां) होय तो तेनी (जन्मेला मनुष्यनी ) सरलगति थाय छे ]. प्रश्नः- प्रमाणे ५ अने ६ ना अंकनी सदृशता भले होय, परन्तु उभयार्थ पj [५ मां पांचनो अने छनो अर्थ तथा ६ मां पांचनो अने छनो अर्थ ओम बन्ने अर्थ ] केवी रीते होय? । उत्तरः-जो तमो अम पूछता हो के उभयार्थ केवी रीते होय ? तो दर्शावाय छे के अक लकार पण जेम "अनिल" शब्दमां वायुना नामथी सहज रीते उच्चराय छे तेम तेज ओक लकार "अनल" शब्दमां अग्निना नामथी अन्य प्रयत्न वडे पण उच्चाराय छे. अथवा योगी योद्ध इत्यादि शब्दोमां जेम स्पष्ट उच्चार वडे य कार उच्चराय छे तेम नियोगी नियम इत्यादि शब्दोमां अस्पष्टपणे उच्चाराय छे अम जाणवू, तथा ओ प्रमाणे व कारमा पण जाणवू. तथा संवृत्त अवो पण अंकार प्रक्रियानियोगथी [ प्रक्रिया वशथी ] विवृत गणाय छे, अने प्रत्याहारने अर्थे उच्चारण अर्थवाळो होवा छतां पण सानुनासिक गणाय छे, तेथी अर्थना वशथी विभक्ति परिणामनी पेठे अंकनी पण गणत्री नियोगथी [ अर्थवशथी] अकत्व वाळी अथवा अकत्व रहित (=बे अंकनी सहशता अथवा असदृशता) विचारवी, जेम वार आदिकनी पेठे. अथवा कारको [छ कारक ] जेम विवक्षाथी [ सदृश असदृश अर्थ दर्शवनारा] होय १ प्रत्याहारमा ग्रहण करता अक्षेरानो वाचक होवा छता पण. २ सदृशस्वरूपवाळी होवा छतां पण तेज पहेली विभक्ति अने बीजी विभक्ति ना अर्थमा अथवा पंचमी तथा पष्टीना पण अर्थमां नदी जूदा जणाय छे. ३ अहि विष भक्षणा दि बाह्य अर्थ ग्रहण न करतां वैरुप्यनी अंतर्भावनाथी तो ते विरुप कार्य थाय छेज अवो भावार्थ संभवे छे. Aho I Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy