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________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ अर्थ:-( हवे श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी भावना विंशति यंत्रथी थाय छे ते आ प्रमाणे-). श्री पार्श्वनाथना दशभव थया छे माटे १० नो अंक भाववो, अर्थात् विंशतियंत्रमा स्थापेला १० ना अंकथी श्रीपार्श्वप्रभुना १० भव विचारवा. ८ ना अंकथी श्रीपार्श्वनाथना आठ गणअने आठ गणधर थया छे ते विचारवा, जय अने विजय कर्मोपर जय विजय प्राप्त करवा] थी २ नो अंक विचारवो. ४ ना अंकथी चार प्रकारना महाव्रत वा बोध उपदेश विचारवो, ७ ना अंकथी सात फणा विचारवी ॥ २४ ॥ नवहस्ततनूरत्न - त्रयमेकादशीव्रते। शतानिपंच५सांगादनि, वैक्रियर्धिभृतः प्रभोः ॥ २५ ॥ अर्थः-९ ना अंकथी नव हाथy शरीर, ३ ना अंकथी रत्नत्रयीपणुं [दर्शन ज्ञान चारित्र ], ११ ना अंकथी अकादशी व्रतपणुं, तथा ५ ना अंकथी पांच भूत अने ते सहित ओक शरीर मळीने ६ नो अंक विचारवो. ओ प्रमाणे वैक्रियऋद्धि वाळा प्रभुना ९ प्रकारना स्थानथी ९ प्रकारना अंक विंशतियंत्रथी विचारवा ॥ २५॥ आयुर्विशाब्धयः पूर्व, भांव्यन्ते भव्यजन्तुभिः। द्वेघारिविजयात् सर्व-सिध्यै विंशति यंत्रके ॥ २६ ॥ अर्थः-विंशति यंत्रमां-यंत्रथी भव्य जिवो श्रीपार्श्वनाथ विगैरे प्रभुन पूर्व भवनं २० सागरोपमनुं आयुष्य विचारवं, तथा बे प्रकारना शत्रुना [राग द्वेष रुप शत्रुना] विजयथी सिद्धि पण विंशतियंत्रथी विचारवी२६॥ ॥ इति श्रीविजययंत्र प्रभावः ॥ हवे चार गति-रीतिवडे २० नो यंत्र बने छे, तेनी रचना कहेवाय छे ते आ प्रमाणे Aho ! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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