SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ श्री अर्जुनपताका || कविसार्धाष्टमासान्प्राग्, प्रतीच्यां नवमास भुक् । सप्तार्चिष्मान्यनिर्वत्र भावात्पदकहानितः ॥ १८ ॥ - अर्थ:- शुक्र पूर्व दिशामां साठा आठ मास अने पश्चिम दिशामां ९ मास मुक्त होय छे, ( भोगी होय छे ), ते कारणथी शुक्रनो ९ नो अंक विंशतियंत्रमां होय छे. तथा शनि सात अर्चि [ ७ जिव्हा ] वाळो छे, अने ते वक्री होवाथी ओक बाद करतां ६ ना अंकवाळो गणाय छे ॥ १८ ॥ षन्मासानातिचरेत, फलंदद्यात्ताथग्रिम । वक्रत्वेपंचमास्यस्य, युगाग्निभूदिनो १३४क्तितः ॥ १९ ॥ ११ अर्थ: - तथा शनि ६ मास अतिचार गतिवाळो छे, तथा ६ मासे अग्रिम [ पछीनी राशिनुं ] फळ आपनारो होय छे, अने वक्र होवाथी ते बन्ने छमांधी १-१ बाद करतां पांचमो अंक आये छे, तेमज वक्रीपणाना १३४ दिवस कहेला होवाथी चार मास उपरान्त पांचमो मास पण १४ दिवस सुधी वक्री छे ते कारणथी शनिनो ५ नो अंक विंशतियंत्रमां स्वपाय छे ॥ १९ ॥ राहुकेतुर्वक्रगती, त्रिभी ३ रुद्रै११स्तयोर्गतिः । स्थानद्वये वैपरीत्यात्, प्रतिष्टाऽत्र द्वयोरिह ॥ २० ॥ अर्थ :- तथा राहुनी अने केतुनी गति अनुक्रमे ३ मास तथा ११ मासनी छे. माटे विंशतियंत्रमा स्थानमा विपरीतपणे ते बन्ने अंकनी स्थापना करवी, अर्थात् प्रथमः केतु संबंधि १९ नो अंक स्थापीने त्यारबाद राहु संबंधि ३ नो अंक स्थापवो ॥ २० ॥ एवं शकुतखेटानां; स्थानाद्विंशतियंत्रकम् । निश्चितं मेघविजय - श्रिया विभववृद्धिदम् ॥ २१ ॥ अर्थः- अ प्रमाणे शकुन निमित्तवाळा ग्रहोना स्थानोथी [ नव स्थानोथी ] श्री मेघविजयजी उपाध्याये लक्ष्मीवडे वैभवती वृद्धि - आपनारो-करनारो २० ना अंकनो यंत्र [ विंशति यंत्र ] नो निश्चय कह्यो ॥ २१ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy