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________________ ॥ श्री अर्जुनपताका ॥ श्री अर्जुनपताकारव्ये, विजयापर नामनि । स्यादर्द्ध ५ भू १ मितेयंत्रम् मध्ये पंचप्रतिष्टया ॥ १ ॥ अर्थ:-जेनुं बीजं नाम विजययन्त्र छे, ओवा अर्जुनपताका नामना यन्त्रमां [ अर्ध-५ अने भू = १, अंकोनां वामतो गतिः अ प्रमाणे] १५ प्रमाणनो ओटले पंदरीयो यन्त्र मध्यखानामां ५ नो अंक स्थापवाथी थाय छे ॥ १ ॥ एवं यत्र त्रिभागाप्ति - र्यन्त्राणि पूर्वसूरिभिः । सर्वाणि तांनि फलदा - न्युक्तानि नव वेश्मसु ॥ २ ॥ अर्थः- अ प्रमाणे ज्यां पूर्वाचार्योओ श्रीजा भागनी प्राप्तिवाळां यन्त्रो दर्शाव्या छे, ते सर्वे यंत्रो नव गृहमां-खानामां स्थपाय छे, अने ते सर्वे फळदाता कह्या छे' ॥ २॥ पूर्वनैऋतिकोदीची - वायु मध्याऽग्निदक्षिणः ! ऐशानी पश्चिमा तासु, क्रमादंकनिवेशनम् ॥ ३ ॥ अर्थ:- प्रथम पूर्वदिशामां, त्यारबाद नैऋत्यकोणमां उत्तरदिशामां वायव्यकोणमां मध्यमां अग्निकोणमां दक्षिणदिशामां ईशानकोणमां अने पश्चिमदिशामां अप्रमाणे क्रमपूर्वक कहेली दिशाओमां अनुक्रमे अंकस्थापन कर ॥ ३ ॥ आ ९ खानावाळा कोठामां पंदरीयो यन्त्र करवानो छे, तेथी उपर का प्रमाणे पंदरनो त्रीजो भाग ५, तेने प्रथम मध्य खानामां स्थापवो. त्यारबाद से ५ जतां वधेला दशमांथी अक अंक न्यून करीने त्यारबाद ओकेक न्यून न्यून अंक त्रीजा श्लोकमां कहेला अनुक्रम प्रमाणे स्थापतां पूर्वखानामां ९, नैऋत्य खानामां ८, उत्तर १ दो अट्ठेहिं न दीजइ दीजइ छकेण तह चउकेण । सत्तमितएवत्ता नव पंचक्केणआगमणं ।। = ५ जे मध्यमां स्थापेल छे तेनी साथे २-८ स्थापतां ६-४ स्थापतां ७-३ स्थापता, अने ९ -१ स्थापतां पंदरीयो यंत्र थाय छे, उपरनो पंदरीयो यंत्र अ प्रमाणेज बन्यो छे ते अनुक्रमे इशान नैऋत्य २-८, वायु अनि ६-४, उत्तर दक्षिण ७ - ३, पूर्व पश्चिम ९-१ अ क्रमथी मध्यगत ५ पूर्वकज बन्यो छे. Aho! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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