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________________ || श्री अर्जुन पताका || खयनारा डलका पडे निसंदेह । गुघतावालानें रती १ दिन तीन दीजे उपर अलुणी रोटी गवारी खवाडी जे गुघतो जाय. रति ३ दिजे तो कीडी नगरो जाय एवं रोग ३५ जाय. रोग छत्तीसमारो ओखदलागे नहीं जिणरे रोग हुवे तिणरे रोग पेला गमायने पछे उन आदमीने चावल तीन दिन तीन भले दिजे खीचडी सेर ५ री कराईने खवाडीजे दुध सेर ३५ पाईजे खुदाघनी हुवे महाकामी हुवे अस्त्री घणी जोईजे इंद्री जाडी घणी हुवे, सोले अंगुल लांबी होवे निसंदेह बात सही छे. रोगी वालाने रोग पहली माईने पछे बली दीजे नामर्द हुवे सो महाकामी हुवे अस्त्री १०८ सोधापे नहि सवातीनामुदूर एक हाथसे उठावे महा बलवान वे निसंदेह बात छे सही सत्यजाणवो १९०९ रा बरसे साके १७७४ प्रवर्तमाने आसाड कृष्ण दले ११ तिथौ अरक बारे लिखी पं हुकमविजये धेनाबसनगरे प्रमाण विजयजी दत्त आमनाय है. जगत सेठ के पुस्तक के उपरसे चंद्रकल्प. श्रीचंद्र मूर्त्तयेनमः । ॐ ऐं श्री क्लीं क्रों कौं कलंकरहिताय सर्वजन वल्लभाय क्षीरवर्णाय ॐ ह्रीं श्रीचंद्रमूर्त्तये नमः मूल मंत्र १३१ विधिः- अथ विधान पहिलीचंद्रमाकी मुरति रुपेकी घडाईये. वाहन सुसला सोवी रूपेका घडाईयै हाथमे चंद्रमाके एकमै संख एक मै कलम } एक मै फुलमाल एकमे झारी सुसला उपरि असवार पूरण मासी सोमवार आवैतदिए मंत्र का जाप सरुकीजै तदिपहिली गुरुकी पूजाकीजै तदि पीछे गुरुकी आग्या लेकर के मंत्र लक्षसवा जपीजैमास ६ मै श्वेतवस्त्र पहिरवौ श्वेतमुक्ताफलकी माला से जापकीजै स्वेत भोजनकीजै दूधभात भोजनकरीये तदिपहिली अपने हाथसुं सुसाकितांई दूधभात खिलाइये पीछे आप भोजन करीयै. ईसतरै मास ६ करीये. पुरब समून्ख होय करिकै जापकरीयै सत्य बोलीयै निद्रा कमकरीयै ब्रह्मचर्य रखीये जमीन सोईये तदि एक दिवसे चंद्रमाका दर्शन होय जिस कार्यका वर मार्गाए होई राज्यद्वारमेंजय होई सर्वजन बल्लभहोय सर्वस्त्री वल्लभहोय. ॥ इति विधान संपूर्ण ॥ १ जाप करवावालाने जीवित शशलो पासे राखनो पूजाने वखते दुधभात खवरावनो. Aho! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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