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________________ आलौकीक हेमसिद्धि आदि गुप्तविद्याएं है जो थोडासा श्रम करनेपर सिद्ध हो सकती है. सं. १३८० में जिनप्रभसूरिने अपने हातोसे टीका रची है ओर लिखी है वहभी समयपर छपाया जायगा पुस्तकोंकी प्रेस कॉपी तयार हो रही है. बावन तोला पावरती-यह कल्प उन्ही महात्माका बनाया हुवा है की जिनोंने सवालाख अजैनकों जैन बनाया था उन्ही महात्माका यहकल्प पांठकांके सामने रखा जाता है. वही श्रीदादाजी जिनदत्तसूरीश्वरजी महाराज जो दुनीयामे धर्मार्थ काम और मोक्षके आलेदरजेके डॉक्टर या वैद कहे जाते है. धर्मके लिये बडे बडे ग्रंथ निर्माण करगये है उदाहरणार्थ [ उपदेशरसायन, कलिकोश, चरचरी इत्याहि. ] दुनीयामें ३५ महान बिमारी या [ देहरोग ] ३६ मी दरिद्रावस्था और ३७ मी मौत [ कर्मरोग ] है. इसकल्पकेद्वारा ३५ महानबिमारी [ देहरोग ] और ३६ मी दरीद्रावस्था नस्ट होती है. और मौत ( कमरोग ) के लिये उपदेश रसायन आदि ग्रंथ मोजुद है, पाठकस्वयं-इसकल्पको परीक्षा करदेख सकते है. उस महात्माका निर्वाण वि. संवत १०११ मे अजमेर में हुवा है इससे समयका निर्णय की कल्पना हो सकती है. उग्रवीर कल्प-यहएक महात्माका अनुभूत किया हुवा कल्प है. इसके विषयमें अधिक तारीफ करना व्यर्थ होगी. जबकि इसकी महत्ता इसके नामसेही प्रकट होती है । इसकी साधनासे अनेकों प्रकारकी बाधाएँ और दरिद्रता देखतेही देखते नष्ट हो जाती है साधना बहुतही सरल है । षट प्रयोगोमे चलता है, चंद्रकल्प-श्रीमान् जगतशेठजीका सिद्ध किया हुवा । यह चंद्रकल्प बडीही खोज और परिश्रमसे जगतशेठकी उनपुस्तकोंसे प्राप्त हुवा है. जिनका कि वे हमेशा अध्ययन किया करतेथे। इसकी दृढ विश्वासपूर्वक यथाविधी साधना करनेसे ६ महिनेमें चन्दका साक्षातकार होता है यह लिखना कोई गलतफहमी नही होगी कि जगतशेठने इसकी साधनासही अतुल यश प्राप्त किया था । हम अपने उत्तर दायित्व पूर्ण कृतकार्यमें कहांतक सफल हुवे है इसका निर्णय विज्ञ पाठकोंपर ही निर्भर हैं। प्रेसके भूतोंकी कृपासे यदि कहीं शुद्धाशुद्धीका नियम भंग हुवा हो तो विज्ञ उसे सुधारकर पढ़ें। यह सिद्ध बिसाकप आदि ६ कल्प समाजमें नई लहर पैदा करही देगी. यदि पाठकोने इसे अपनाया तो फरिसे मै दुसरा ग्रंथ लेकर उपस्थित होउगा एसी आशा है। निवेदन, एस्. के कोटेचा. मु० धुलीया, (जि. प. खानदेश. ) Aho ! Shrutgyanam
SR No.009872
Book TitleAnubhutsiddh Visa Yantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year1937
Total Pages150
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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