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________________ भावनाबोध - बारह भावना प्रथम चित्र अनित्यभावना (उपजाति) विद्युत लक्ष्मी प्रभुता पतंग, आयुष्य ते तो जळना तरंग; पुरंदरी चाप अनंग रंग, शुं राचीए त्यां क्षणनो प्रसंग! विशेषार्थ-लक्ष्मी बिजलीके समान है। जैसे बिजलीका चमकारा होकर विलीन हो जाता है, वैसे लक्ष्मी आकर चली जाती है। अधिकार पतंगके रंगके समान है। पतंगका रंग जैसे चार दिनकी चाँदनी है, वैसे अधिकार मात्र थोडा समय रहकर हाथसे चला जाता है। आयुष्य पानीकी हिलोरके समान है। जैसे पानीकी हिलोर आयी कि गयी वैसे जन्म पाया और एक देहमें रहा या न रहा, इतनेमें दूसरी देहमें जाना पडता है। कामभोग आकाशमें उत्पन्न होनेवाले इंद्रधनुषके सदृश है। जैसे इन्द्रधनुष वर्षाकालमें उत्पन्न होकर क्षणभरमें विलीन हो जाता है, वैसे यौवनमें कामविकार फलीभूत होकर जरावस्थामें चले जाते हैं। संक्षेपमें हे जीव ! इन सभी वस्तुओंका सम्बन्ध क्षणभरका है, इनमें प्रेमबंधनकी साँकलसे बँधकर क्या प्रसन्न होना ? तात्पर्य कि ये सब चपल एवं विनाशी हैं, तू अखंड एवं अविनाशी है, इसलिए अपने जैसी नित्य वस्तुको प्राप्त कर! भिखारीका खेद दृष्टांत-इस अनित्य और स्वप्नवत् सुखके विषयमें एक दृष्टांत कहते हैं एक पामर भिखारी जंगलमें भटकता था। वहाँ उसे भूख लगी। इसलिए वह बिचारा लडखडाता हुआ एक नगरमें एक सामान्य मनुष्यके घर पहुँचा। वहाँ जाकर उसने अनेक प्रकारकी आजिजी की। उसकी गिडगिडाहटसे करुणार्द्र होकर उस गृहपतिकी स्त्रीने घरमेंसे जीमनेसे बचा हुआ मिष्टान्न लाकर उसे दिया। ऐसा भोजन मिलनेसे भिखारी बहुत आनन्दित
SR No.009867
Book TitleDrushtant Kathao
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other & Rajchandra
File Size47 MB
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