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________________ भावनाबोध - एकत्वभावना आप सबांधव और आप सधर्म हैं, आप सर्व अनाथोंके नाथ हैं। हे पवित्र संयति ! मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ। ज्ञानरूपी आपकी शिक्षाको चाहता हूँ। धर्मध्यानमें विघ्न करनेवाले भोग भोगने संबंधी, हे महाभाग्यवान् ! मैंने आपको जो आमन्त्रण दिया तत्संबंधी अपने अपराधकी नत-मस्तक होकर क्षमा माँगता हूँ।" इस प्रकार स्तुति करके राजपुरुष-केसरी परमानन्दको पाकर रोमांचसहित प्रदक्षिणा देकर सविनय वंदन करके स्वस्थानको चला गया। प्रमाणशिक्षा-अहो भव्यो ! महातपोधन, महामुनि, महा-प्रज्ञावान, महायशस्वी, महानिग्रंथ और महाश्रुत अनाथी मुनिने मगधदेशके राजाको अपने बीते हुए चरित्रसे जो बोध दिया है वह सचमुच अशरणभावना सिद्ध करता है। महामुनि अनाथीके द्वारा सहन किये गये दुःखोंके तुल्य अथवा इससे अति विशेष असह्य दुःख अनंत आत्मा सामान्य दृष्टिसे भोगते हुए दिखायी देते हैं। तत्संबंधी तुम किंचित् विचार करो। संसारमें छायी हुई अनन्त अशरणताका त्याग करके सत्य शरणरूप उत्तम तत्त्वज्ञान और परम सुशीलका सेवन करो, अन्तमें ये ही मुक्तिके कारणरूप हैं। जिस प्रकार संसारमें रहे हुए अनाथी अनाथ थे, उसी प्रकार प्रत्येक आत्मा तत्त्वज्ञानकी उत्तम प्राप्तिके बिना सदैव अनाथ ही है। सनाथ होनेके लिए पुरुषार्थ करना यही श्रेय है ! इति श्री भावनाबोध' ग्रन्थके प्रथम दर्शनके द्वितीय चित्रमें 'अशरणभावना के उपदेशार्थ महानिग्रंथका चरित्र समाप्त हुआ। तृतीय चित्र एकत्वभावना (उपजाति) शरीरमां व्याधि प्रत्यक्ष थाय, ते कोई अन्ये लई ना शकाय । ए भोगवे एक स्व-आत्म पोते, __ एकत्व एथी नयसुज्ञ गोते॥ विशेषार्थ-शरीरमें प्रत्यक्ष दीखनेवाले रोग आदि जो उपद्रव होते हैं वे स्नेही, कुटुम्बी, पत्नी या पुत्र किसीसे लिये नहीं जा सकते; उन्हें मात्र एक अपना आत्मा स्वयं ही भोगता है। इसमें कोई भी भागी नहीं होता। तथा पाप-पुण्य आदि सभी विपाक अपना आत्मा ही भोगता है। यह अकेला आता है, अकेला जाता है; ऐसा सिद्ध करके विवेकको भलीभाँति जाननेवाले पुरुष एकत्वको निरन्तर खोजते हैं। नमिराजर्षि और शक्रंद्रका संवाद दृष्टांत-महापुरुषके इस न्यायको अचल करनेवाले नमिराजर्षि और शक्रंद्रका वैराग्योपदेशक संवाद यहाँपर प्रदर्शित करते हैं। नमिराजर्षि मिथिला नगरीके राजेश्वर थे। स्त्री, पुत्र आदिसे
SR No.009867
Book TitleDrushtant Kathao
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other & Rajchandra
File Size47 MB
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