SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ८५ ॥ जिन ध्यायंतहि परमपय लहै इक क्षणेन ॥ १ ॥ जिनथापनात सालंवध्यानकार निरालंबपद पावै है । कैसी है थापना ॥ उक्तं च किं कमी किमुत्सवमयी श्रेयोमयी किं किमु । ज्ञानानन्दमयी किमुन्नतमयी किं सर्वशोभामयी || इत्थं किं किमिति प्रकल्पन परैस्त्वन्मूर्तिरुदीक्ष्यता । किं सर्वातिगमेव दर्शयति स ध्यानप्रसादान्महः ॥ १ ॥ मोहोद्दामदवानलप्रशमने पाथोदवृष्टिसमः । स्रोतोनिर्झरणीसमीहतविधौ कल्पेन्द्रवल्ली सताम् ॥ संसारप्रबलान्धकारमथने मार्तण्डचण्डद्युति । जैन मूर्तिरुपास्यतां शिवसुखे भव्यः पिपासास्ति चेत् ॥ स्वसंवेदनरूप वीतरागमुद्रा देखि स्वसंवेदभावरूप अपना स्वरूप विचारै - पूर्व
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy