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________________ . . ॥ अनुभवप्रकाश । पान ६८ ॥ । तिनकै था, सो इसकै तौ थोरा है, सो परिग्रह जोरावरी इसके परिणामनमें न आवे है है है । यौंही दौरि दौरि परिग्रहमैं धुकै है । जब ठालौ होय, तब विकथा करै । तब स्वरू-है है पके परिणाम करै, तौ कौन रोकै? परपरिणाम सुगम , निजपरिणाम विषम वतावे है। है देखौ अचिरजकी बात, देखे है जानै है देख्यौ न जाय जान्यौ न जाय । ऐसें कहत है ( लाजहू न आवै । संसारचातुरीको चतुर आप जानिवेकौ शठ ऐसौ हठ धिठौहीसौं पकरि पकरि पररत विसनकौं गाढौ भयौ । स्वभावशुद्धि विषारी भारी भव बांधि अंध है १ धंध धायौ न लखायौ । आप अब श्रीगुरुप्रतापते संतसंग मिलाप, जातै मिटै भवताप, है है आप आपहीमें पावै, ज्ञान लक्षण लखावै, आप चिंतन धरावै, निजपरिणति बढावै, है है निजमांहि लवलावै, सहजस्वरसकौं पावै, कर्मवन्धन मिटावै, भाव आपमैं लगावै, वर चिद्गुणपर्यायकौं ध्यावे, तव हर्ष उपावै, मन विश्राम आवै, रसास्वादकौं जु पावै, ह १ निज अनुभव कहावै, ताकौं दूरिको वतावै, भवभावरी घटावै, आप अलख लखावै, है
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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