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________________ ॥ अनुभवप्रकाश ।। पान ३८ ॥ अज्ञानपटल जब मिटै, सद्गुरुवचन अञ्जनौं पटल दुरि भये ज्ञाननयन प्रकाशै, है है तब लोकालोक दरसै । ऐसा ज्ञान ताकी महिमा अपार, अनेक मुनि पार भये । ज्ञानहै मय मूरतिकी सूरतिका सेवन करि करि अपने सहजका ख्याल है । परपरमैं विषम है हैं है। सहज बोध कलाकरि सुगम, कष्टक्लेशतें दूरि है । काहेत ? अफीम खाये विषकी हैं १ लहरी तुरत चढे । अमृतसेवनः सुरततृप्ति हो सुख पावै । तैसें कर्मसंक्लेशमैं शान्त पद हैं नहीं। अनन्तसुखनिधानस्वरूप भावनाके करतही अविनाशी रस होय, ता रसकौं । है संत सेय आये । तूं ताकौं सेय । श्रेयपदरूप अनूप ज्योतिःस्वरूप पद अपनाही है। है हैं अपनें परमेश्वरपदका दूरि अवलोकन मति करें। आपहीकौं प्रभु थाप्या, जाकौं नेक है है यादि करि, ज्ञानज्योतिका उदय होय, मोह अन्धकार विलय जाय, आनन्दसहित है हैं कृतकृत्यता चित्तमैं प्रकटै । ताकौं बेगि अवलोकि , आन ध्यानता निवारि विचारिकै है है संभारि, ब्रह्मविलास तेरा तोमें है । यातें कहा अधिक ? जो, याकों छोडि तूं परकौं घ्यावै ।
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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