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________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान २॥ है सासंता आनन्दमय परमपद है, ताको पावै, ताकी संभारके करतही स्वरूपप्राप्ति होय है है है, यह उपाय दिखाइये है। येही परिणाम उलटि परमैं आपा मानि स्वरूपका विस्मरण है है करि रह्या है । येही परिणाम सुलटि स्वरूपकौं आपा मांनि परविस्मरण करै, तो मुक्तिहैं कामिनीका कन्थ होवे ॥ ऐसे परिणाममें कबु कलेश तो नहीं । ये परिणाम कौन करै ? ताका समाधान, है ई अनादि अविद्यामैं पडा है । मोहकी गांठि निवड पडी है । आत्मा परका एकत्वसन्धाने है १ होय रहा है । जैसैं कोई पुरुष अफीमके अमलको चढ्या है, वह दुःख पावै है, परि है है छूटि न सकै, काहेते बहुत चढ्या ? छूटे सुख है, कलेश नाही, परि वाइडि आवै सो है है लेही ले । तैसें पर मो वध्या है, छूटे सुख है, परि न छूटे है, अनादिसँयोग छूटतें सुख । है है, परि झूठेही दुःख माने है। याके मेटवेको प्रज्ञाछैनी आत्मपरके एकत्वसन्धानमें । है डारे, चेतना अंश अपना जाने, जामैं जडप्रवेश नांही । कैसे जाने ? सो कहिये है ।। है
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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