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________________ ॥अनुभवप्रकाश ॥ पान २०॥ है शुद्ध होय है । अनात्मपरिणाम मेटि आत्मपरिणाम करनाही कृतकृत्यपणा है । योगी है है श्वरभी इतना करे हैं । प्राणायाम, ध्यान, धारणा, समाधि याहीके निमित्त हैं। १ स्वरूपपरिणाममै अनन्तसुख भया । निजपद आस्तिक्यता भई । अनुपपदमैं लीनता है है भई । एक स्वरस भया, शुद्ध उपयोग भया । अनुभव सहजपदका भया। महिमा है है अपार आपपरिणामकी है। परिणाम आपके कीये विना परमेश्वर परपरिणामतें गोता है है खाय है । अपने परिणाम स्वरूपानन्दी भये, परमेश्वर कहाया। ऐसा प्रभाव आत्म-है है ज्ञानपरिणामका है । अपूर्वलाभ अविनाशीपदका भया परिणमन” । सो परिणाम कैसे है १ स्वरूपमैं लागै? सो कहिये हैं। परपराङ्मुख होय वारंवार स्वपद अवलोकानिके भाव करै । दर्शन ज्ञान चारित्र है हैं चेतनाका प्रकाश वो करिकरि स्वरूपपरिणति करै । आत्मज्योति अनात्मसौं भिन्न है १ अखण्डप्रकाश आनन्दचेतनास्वरूप चिद्विलासका अनुभवप्रकाश परिणामकरि प्रकाशै । है
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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