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________________ ॥ अनुभवप्रकाश || पान १०४ ॥ निरंतर जहां अचलज्योतिका विलास अनुभवप्रकाश मैं भया उपयोग में परिणाम लगे ज्यौंज्यों दर्शन ज्ञान चेतना स्वरूप अनूप अखण्डित अनंतगुणमण्डितकौं जानि रसास्वाद ले त्यौंत्यौं परविस्मरण होय पर उपाधिकी लीनता मिटै । समाधि प्रगटै । तब उत्कृष्ट सम्यक्प्रकार स्वरूपवेत्ता होय ॥ सम्यग्ज्ञान भये वस्तुकी महिमा जानै । जानतां आनंद होय । ज्ञान ज्ञानकौं जानैं । ज्ञान दर्शनकौं जानें । ज्ञान सब गुणक जानें । द्रव्यकौं जानें पर्यायकों जानें एकोदेश भेद साधक ज्ञान जानें । ज्ञानकरि वस्तु जानतां परमपद पावै । कासा सुख ( संपूर्णसुख ) परोक्षज्ञानही मैं है । प्रत्यक्षप्रतीति मैं वेदै है । तहां आनंद ऐसा होय है ।। संप्रज्ञात समाधिमैं दुःखादिवेदना प्रत्यक्ष भये हू न वेदै । विधान स्वरूप वेदनेका है । मन विकार विलय जेते अंशकरि गया तेती समाधि भई । सम्यग्ज्ञानकरि जेता भेद वस्तुका गुणनकरि जान्या तेता सुख आनंद बढ्या । विश्राम भये स्वरूप
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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