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________________ Blessing from Pujya Roop Chandraji Maharaj Saheb मंगल संदेश दिनांक : 16/12/2011 श्रावक-श्रेष्ठ डॉ. रजनी शाह ऊँ स्वस्ति। श्री अष्टापद महातीर्थ ग्रंथ का दूसरा भाग प्रकाशित होने जा रहा है, यह संवाद आप द्वारा मिला। बहुत बहुत बधाई। भगवान ऋषभदेव की निर्वाण भूमि श्री अष्टापद जी पर जिस लगन और समर्पण भाव से आप शोध-कार्य में लगे हैं, वह स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य है। दिगम्बर ग्रंथों में ऋषभदेव भगवान का निर्वाण कैलाश गिरि माना गया है। अष्टापद और कैलाश पर्वत एक ही हैं अथवा अलग-अलग पर्वत है, यह भी अन्वेषणीय हैं। सन् 2003 जुलाई में अपनी अष्टापद-कैलाश यात्रा में मैंने पाया, कैलाश-पर्वत का आकार-प्रत्याकार जैन ग्रंथों के वर्णन से काफी मिलता जुलता है। जैन ग्रंथों में उल्लेख है भगवान ऋषभदेव के निर्वाण के पश्चात् भरत चक्रवर्ती ने पर्वत पर रत्ल-सुवर्णमय जिनालय बनवाये। उन जिनालयों की पवित्रता बनाये रखने के लिए उसने पर्वत के निचले भाग को सीधा-सपाट और गोलाकार कर दिया। इस वर्णन के साथ आज के कैलाश पर्वत की काफी सदृशता लगती है। किन्तु कैलाश का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह बर्फ की सघन परतों से ढका रहता है। इस स्थिति में वहां पर आवास-निवास और किसी तरह का निर्माण कार्य संभव नहीं लगता। अब रही अष्टापद जी की बात। कैलाश पर्वत के समीप ही स्थित पर्वत को हिन्दू परंपरा अष्टपद कहती है। इसी पर्वत पर आरोहण करके हिन्दू तीर्थ-यात्री कैलाश-दर्शन करते हैं, रुद्राभिषेक हवन के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। हमने भी यहीं से जैन ध्वज के साथ णमोकार महामंत्र, श्री भक्तामर स्तोत्र तथा आरती द्वारा भगवान ऋषभदेव का स्तुति-गान किया था। इस अष्टापद पर्वत पर आरोहण, आवास तथा निर्माण कार्य भी संभव है। मैं अपना अनुभव इसलिए कलम-बद्ध कर रहा हूं यदि शोध-कार्य में इसका कोई उपयोग हो सके। कभी-कभी मन में ऐसा भी आता है कि अष्टापद-कैलाश के वर्तमान जलवायु में तथा ऋषभदेव भगवान के समय के जलवायु में क्या अंतर हो सकता है? आज जून-जुलाई माह में भी जहां टेम्प्रेचर माइनस दस से नीचे रहता है, ऑक्सीजन अत्यंत अल्प-मात्रा में उपलब्ध है। इसलिए मनुष्य, पशु-पक्षी ही नहीं पेड़-पौधे भी नहीं पनप पाते हैं। इस स्थिति में भगवान ऋषभदेव का हजारों मुनियों के साथ अष्टापद पर्वत पर विराजमान होने का उल्लेख जलवायु की दृष्टि से भी गहरे अनुसंधान की आवश्यकता मांगता है। इसमें कोई संदेह नहीं अष्टापद-कैलाश पर्वत का वातावरण बहुत ही पावन और दिव्य है। जहां तक नजर जाए हिम-आच्छादित पर्वतों की कतार अद्भुत है। उस दिव्य भूमि पर भगवान ऋषभदेव के निर्वाण-स्थल अष्टापद/कैलाश पर्वत के निश्चित निर्णय तक आपका शोध-कार्य पहुंच सके, यही मंगल कामना है। Roopchunun Miami आचार्यश्री रूपचन्द्र जैन आश्रम, नई दिल्ली VIII
SR No.009860
Book TitleAshtapad Maha Tirth 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Others
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2012
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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