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________________ 11 ॥ महामणि चिंतामणी ॥ गुरु गौतमस्वामी : एक अध्ययन भद्दो विणीय विणओ, पढम गणहरो सम्मत्त सुअ नाणी। जाणतोडवि तमत्थं, विम्हिय हियओ सुणइ सव्वं । -प्रभु महावीर-हस्त-दीक्षित श्री धर्मदास गणि विरचित श्री उपदेशमाला, गाथा-६ किसी समय भगवान् महावीर चम्पानगरी पधार रहे थे। तभी शाल और महाशाल ने स्वजनों को प्रतिबोधित करने जाने की इच्छा व्यक्त की। प्रभु की आज्ञा से गौतस्वामि के नेतृत्व में श्रमण शाल और महाशाल पृष्ठचम्पा गये। वहाँ के राजा गागलि, उसके मातापिता यशस्वती और पिढर को प्रतिबोधित कर दीक्षा प्रदान की। पश्चात् वे सब चल पड़े प्रभु की सेवा में। मार्ग में चलते-चलते शाल और महाशाल गौतमस्वामि के गुणों का चिन्तन करते हुए और गागलि तथा उसके मातापिता शाल एवं महाशाल मुनियों की परोपकारिता का चिन्तन करते हुए अध्यवसायों की शुद्धि के कारण कैवल्यता को प्राप्त हो गये। सभी भगवान् के पास पहुँचे। ज्यों ही शाल और महाशालादि पाँचों मुनि केवलियों की पर्षदा में जाने लगे तो गौतम ने उन्हें रोकते हुए कहा- "पहले त्रिलोकीनाथ को वन्दना करो"। उसी क्षण भगवान् ने कहा- “गौतम ! ये केवली हो चुके हैं अतः इनकी आशातना मत करो।" गौतम ने उनसे क्षमायाचना की। किन्तु मानस अधीर आकुलव्याकुल संदेहों से भर गया। सोचने लगे-मेरे द्वारा दीक्षित अधिकांश शिष्य केवलज्ञानी हो चुके हैं। परन्तु मुझे अभी तक केवलज्ञान नहीं हुआ। क्या मैं सिद्धपद प्राप्त नहीं कर पाऊँगा ? एक बार प्रभुमुख से अष्टापद तीर्थ की महिमा का वर्णन हुआ; प्रभु ने कहा- जो साधक स्वयं की आत्मलब्धि के बल पर अष्टापद पर्वत पर जाकर, चैत्यस्थ जिनबिम्बों की वन्दना कर एक रात्रि वहाँ निवास करता है वह निश्चय ही मोक्ष का अधिकारी बनता है। और इसी भव में मोक्ष जाता है। गणधर गौतम उपदेश के समय कहीं बाहर गये थे लौटने पर उन्हें यह वाणी देवमुख से सुनने को मिली। गौतम को मार्ग मिल गया। भगवान् से अनुमति ले कर अष्टापद यात्रार्थ गये। गुरु गौतम आत्मसाधना से प्राप्त चारणलब्धि के बल पर वायुवेग से अष्टापद पर पहुंचे। इधर कौडिन्य, दिन्न और शैवाल नाम के तीन तापस भी मोक्षप्राप्ति की निश्चयता हेतु अपने-अपने ५००-५०० शिष्यों के साथ कठोर तप सहित अष्टापद चढ़ने का प्रयत्न कर रहे थे। कौडिन्य उपवास के अनन्तर पारणा, फिर उपवास करता था। पारणा में कंदमूल आदि का आहार ग्रहण करता था। वह अष्टापद पर्वत की आठ सोपानों में से एक पहली ही सोपान चढ़ पाया था। Guru Gautamswami : Ek Adhyayan Vol. I Ch. 4-C-D, Pg. 163-169 -6317 Mahamani Chintamani
SR No.009858
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 336 to 421
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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