SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth है उसी प्रकार भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत आदि को सम्पूर्ण कलाओं में पारंगत बनाया। वैदिक परम्परा में शिव को 'माहेश्वर' कहा है। पाणिनी ने 'अ इ उ ण' आदि सूत्रों को महेश्वर से प्राप्त हुए बताया है और जैन परम्परा ऋषभदेव को महेश्वर मानती है। उन्होंने सर्वप्रथम अपनी पुत्री 'ब्राह्मी' को 'ब्राह्मीलिपि' अर्थात् अक्षर विद्या का परिज्ञान कराया। वैदिक परम्परा में शिव का वाहन 'ऋषभ' बतलाया है और जैन मान्यता के अनुसार भगवान् ऋषभदेव का चिह्न 'वृषभ' है। वैदिक-परम्परा में शिव को त्रिशूलधारी बतलाया है। जहाँ भी शिव की मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं वहाँ उनका चिह्न स्वरूप त्रिशूल अंकित किया जाता है। जैन-परम्परा के अनुसार वह त्रिशूल सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का प्रतीक है। इस प्रकार शिव और ऋषभदेव के सम्बन्ध में तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर मात्र इन दोनो में समानता ही दृष्टिगोचर नहीं होती वरन् यह निष्कर्ष निकलता है कि यह ऐक्य, किसी एक ही व्यक्ति की ओर इंगित करता है, और वह व्यक्ति भगवान् ऋषभदेव ही हैं, अन्य कोई नहीं। ६. ऋषभदेव और हिरण्यगर्भ ऋग्वेद की एक ऋचा से भगवान् ऋषभदेव को 'हिरण्यगर्भ बताया है। वे प्राणीमात्र के स्वामी थे, उन्होंने आकाश सहित पृथ्वी को धारण किया, हम हवि के द्वारा किस देव की आराधना करें आचार्य सायण ने इस पर भाष्य करते हुए लिखा है - 'हिरण्यगर्भ अर्थात् हिरण्यमय अण्डे का गर्भभूत । अथवा जिसके उदर में हिरण्यमय अण्डा गर्भ की तरह रहता है, वह हिरण्यगर्भ प्रपञ्च की उत्पत्ति से पूर्व, सृष्टि-रचना के इच्छुक परमातमा से उत्पन्न हुआ।१२८ इस प्रकार सायण ने हिरण्यगर्भ का अर्थ प्रजापति लिया है। महाभारत में हिरण्यगर्भ को योग का वक्ता बताया है-'हिरण्यगर्भ योगमार्ग के प्रवर्तक हैं, उनसे और कोई पुरातन नहीं।२९ ऋग्वेद भी 'हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे' लिखकर हिरण्यगर्भ की प्राचीनता को सूचित करता है। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् ऋषभदेव पूर्वभव में सर्वार्थसिद्ध विमान में सर्वोत्कृष्ट ऋद्धि-सम्पन्न देव थे। वहाँ से च्यव कर जब मरुदेवी की कुक्षि में आये, तो कुबेर ने नाभिराय का भवन हिरण्य की वृष्टि से भरपूर कर दिया, अतः जन्म के पश्चात् भगवान् ‘हिरण्यगर्भ' के रूप में प्रसिद्ध हो गये।३० ७. ऋषभदेव और ब्रह्मा लोक में ब्रह्मा नाम से प्रसिद्ध जो देव है, वह भगवान् ऋषभदेव को छोड़कर दूसरा नहीं है। ब्रह्मा के अन्य अनेक नामों में निम्नलिखित नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं २७ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम । -ऋग्वेद १०।१२१११ २८ 'हिरण्यगर्भः हिरण्यमयस्याण्डस्य गर्भभूतः प्रज्ञापतिर्हिरण्यगर्भः। तथा च तैत्तिरीयकं -प्रजापतिर्वे हिरण्यगर्भः प्रजापतेरनुरूपाय। यद्धा हिरण्यमयोऽण्डो गर्भवद्यस्योदरे वर्तते सोऽसौ सूत्रात्मा हिरण्यगर्भ उच्यते। अग्रे प्रपञ्चोत्पत्तेः प्राक् समवर्तत् मायाध्यक्षात् सिसृक्षोः परमात्मनः साकाशात् समजायत।... सर्वस्य जगतः परीश्वर आसीत्...।' -तैत्तिरिधारण्यक भाष्य-सायणाचार्य, ५।५।१२ २९ हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः। -महाभारत, शान्तिपर्व, ३४९ ३० (क) सैषा हिरण्यमयी वृष्टिः धनेशेन निपातिता। विभोहिरण्यगर्भत्वमिव बोधयितुं जगत् ।। -महापुराण१२।९५ (ख) गब्भडिअस्स जस्स उ हिरण्णवुट्टी सकचणा पडिया। तेणं हिरण्णगब्भो जयम्मि उवगिज्जए उसभो।। -पद्मपुराण३।६८ 2534 Rushabhdev : Ek Parishilan
SR No.009857
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy