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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth उनके पावन उपदेश को श्रवण कर वह जैन धर्मावलंबी बन गया। सम्पूर्ण जैन समाज में इस स्तोत्र का सर्वाधिक प्रचलन है। स्तोत्र की प्रारम्भिक शब्दावली के कारण प्रस्तुत स्तोत्र भक्तामर के नाम से विश्रुत हैं। इस स्तोत्र का अपरनाम 'ऋषभदेव स्तोत्र' और 'आदिनाथ स्तोत्र' भी है। भक्ति की भागीरथी इस स्तोत्र के प्रत्येक पद्य में प्रवाहित है। सहस्रों व्यक्तियों को यह स्तोत्र कण्ठस्थ है और प्रतिदिन श्रद्धा से विभोर होकर पाठ भी करते हैं। भक्तामर स्तोत्र की अत्याधिक लोकप्रियता होने से अनेक भक्त कवियों ने इस पर समस्या पूर्ति भी की है, और वृत्तियाँ भी लिखी हैं। भावप्रभसूरि, जिनका समय संवत् १७११ हैं, उन्होंने 'भक्तामर समस्यापूर्ति' स्तोत्र की रचना की। मेघविजय उपाध्याय ने 'भक्तामर टीका' का निर्माण किया। श्री गुणाकर जिनका समय संवत् १४२६ है, उन्होंने 'भक्तामरस्तोत्रवृत्ति' लिखी। स्थानकवासी आचार्य मुनि श्री घासीलालजी महाराज ने 'भक्तामर स्तोत्र' के आदि शब्द के अनुसार ही 'वर्धमान भक्तामर स्तोत्र' की रचना की। इनके अतिरिक्त भी अन्य अनेक ग्रन्थ भक्तामर एवं उसकी समस्या पूर्ति के नाम पर प्राप्त होते हैं। भक्तामर स्तोत्र के अतिरिक्त ऋषभदेव भगवान् की स्तुति के और भी स्तोत्र उपलब्ध होते हैं, जिनमें निम्न स्तोत्र विशेषतया ज्ञातव्य हैं (१) ऋषभजिन स्तुति-रचयिता श्री जिनवल्लभसूरि, १२वीं शती। (२) ऋषभजिन स्तवन-श्री जिनप्रभसूरि यह पद्यमय १९ छन्दों का स्तवन है। (३) भरतेश्वर अभ्युदय-पं. आशाधरजी। (४) आदिदेवस्तव। (५) नाभिस्तव। (६) युगादिदेव द्वात्रिंशिका | इन तीनों के कर्ता आचार्य हेमचन्द के शिष्य रामचन्द्र सूरि हैं।५६ सत्रहवीं शताब्दी के प्रतिभासम्पन्न कवि उपाध्याय यशोविजयजी ने भी 'श्री आदिजिनस्तोत्रम्' की रचना की है। यह स्तोत्र केवल छह श्लोकों में निबद्ध है।५७ * आधुनिक साहित्य में ऋषभदेव : आधुनिक चिन्तकों ने भी भगवान् ऋषभदेव पर शोधप्रधान तुलनात्मक दृष्टि से लिखा है। कितने ही ग्रन्थ अति महत्त्वपूर्ण हैं। संक्षेप में आधुनिक साहित्य का परिचय इस प्रकार है(१) चार तीर्थङ्कर५८ इसके लेखक प्रज्ञामूर्ति पं. सुखालालजी हैं। उन्होंने संक्षेप में सारपूर्ण भगवान् ऋषभदेव के तेजस्वी व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। (२) भरत-मुक्ति५९ इसके लेखक आचार्य तुलसी हैं। ग्रन्थ की सविस्तृत प्रस्तावना में मुनि महेन्द्रकुमार जी 'प्रथम' ५६ जैनस्तोत्र समुच्चय, मुखि चतुरविजय द्वारा सम्पादित, निर्णय सागर प्रेस बम्बई वि. स. १९८४ में मुद्रित पृ. २६ । ५७ स्तोत्रावली, सम्पादक-यशोविजयजी, प्रकाशक-यशोभारती जैन प्रकाशन समिति, बम्बई, सन् १९७५। ५८ पं. श्री सुखलालजी संधवी, श्री जैन संस्कृति संशोधन मंडल, बनारस-५, सन् १९५३।। ५९ आचार्य तुलसी, चक्रवर्ती भरत के जीवन पर आधारित प्रबन्ध काव्य, रामलाल पुरी, संचालक-आत्माराम एण्ड सन्स, काश्मीरी गेट, दिल्ली ६, सन् १९६४। -32452 Rushabhdev : Ek Parishilan
SR No.009857
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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