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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth * भाष्य साहित्य में ऋषभदेव : १. विशेषावश्यकभाष्य ७ नियुक्तियों के पश्चात् भाष्य साहित्य का निर्माण किया गया। नियुक्तियों की तरह भाष्य भी प्राकृत भाषा में हैं। भाष्य साहित्य में विशेषावश्यकभाष्य का अत्याधिक महत्त्व है। यह जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की एक महत्त्वपूर्ण कृति है। ज्ञानवाद, प्रमाणशास्त्र, आचार, नीति, स्याद्वाद, नयवाद, कर्मवाद प्रभृति सभी विषयों पर विस्तार से विश्लेषण किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ की यह महान् विशेषता है कि जैनतत्त्व का विश्लेषण, जैन दृष्टि से ही न होकर अन्य दार्शनिक मान्यताओं की तुलना के साथ किया गया है। आगम साहित्य की प्रायः सभी मान्यताएँ तर्क रूप में इसमें प्रस्तुत की गई हैं। इसमें भगवान् ऋषभ का संक्षेप में सम्पूर्ण जीवन- वृत्त आया है। जो आवश्यक नियुक्ति में गाथाएँ हैं, उन्हीं का इसमें प्रयोग है। कुछ गाथाएँ नूतन भी हैं। इसमें मरीचि के भव, कुलकरों का वर्णन, ऋषभदेव के चरित्र में भावी तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती आदि का निरूपण किया गया है। * चूर्णि साहित्य में ऋषभदेव : १. आवश्यक चूर्णि२८ आगम की व्याख्याओं में सर्वप्रथम नियुक्तियाँ, उसके पश्चात् भाष्य और उसके पश्चात् चूर्णि साहित्य रचा गया है। आवश्यक चूर्णि, चूर्णि साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। आवश्यक नियुक्ति में जिन प्रसंगों का संक्षेप में वर्णन किया गया है उन्हीं प्रसंगों पर चूर्णि में विस्तार से वर्णन है। प्रस्तुत चूर्णि में भगवान् ऋषभदेव से सम्बन्ध रखने वाली निम्न घटनाओं का निर्देश मिलता है (१) प्रथम कुलकर विमलवाहन का पूर्वभव।। (२) अन्य छह कुलकरों का वर्णन एवं दण्डनीति । (३) ऋषभदेव के सात पूर्वभवों का उल्लेख। (४) श्री ऋषभदेव का जन्म, जन्मोत्सव । नामकरण, वंशस्थापन। (६) अकाल मृत्यु। (७) ऋषभदेव का सुमंगला व सुनन्दा के साथ विवाह । (८) सन्तानोत्पत्ति । (९) राज्याभिषेक, शिल्पादि कर्मों की शिक्षा। (१०) ऋषभदेव का शिष्य परिवार। (११) दीक्षा (यह जो क्रम विपर्यय हुआ है वह सभी तीर्थङ्करों का सामूहिक वर्णन होने से हुआ है।) (१२) नमि-विनमि को विद्याधर ऋद्धि। (१३) भिक्षा के अभाव में चार हजार श्रमणों का पथभ्रष्ट होना। (१४) श्रेयांसादि के स्वप्न एवं भगवान् का पारणा। (१५) श्रेयांस के पूर्वभव । ३७ श्री जिनभद्रगणी विरचित, विशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञवृत्तिसहित, द्वितीय भाग, सम्पादक- पंडित दलसुख मालवणिया, प्रकाशक- लालभाई दलपतभाई, भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद, सन् १९६८ । ३८ आवश्यक चूर्णि, ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम, सन् १९२८ । Rushabhdev : Ek Parishilan -26 232
SR No.009857
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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