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________________ धर्म संसार के ज्ञात सभी प्राचीन धर्मों में से एक है और उसका घर भारत है। २२ ·5 Shri Ashtapad Maha Tirth डॉ. जिम्मर जैन धर्म को प्रागैतिहासिक तथा वैदिक धर्म से पृथक् धर्म है इसका प्रतिपादन करते हुए लिखते हैं "ब्राह्मण आर्यों से जैन धर्म की उत्पत्ति नहीं हुई है, अपितु वह बहुत ही प्राचीन प्राक् आर्य उत्तर-पूर्वी भारत की उच्च श्रेणी के सृष्टि विज्ञान एवं मनुष्य के आदि विकास तथा रीति-रिवाजों के अध्ययन को व्यक्त करता है । २३ आज प्रागैतिहासिक काल के महापुरुषों के अस्तित्व को सिद्ध करने के साधन उपलब्ध नहीं हैं, इसका अर्थ यह नहीं है, कि वे महापुरुष हुए ही नहीं हैं। अवसर्पिणी काल में भोगभूमि के अन्त में अर्थात् पाषाण काल के अवसान पर कृषिकाल के प्रारम्भ में प्रथम तीर्थकर ऋषभ हुए, जिन्होंने मानव को सभ्यता का पाठ पढ़ाया। उनके पश्चात् और भी तीर्थकर हुए, जिनमें से कितनों का उल्लेख वेदादि ग्रन्थों में भी मिलता है, अतः जैन धर्म भगवान् ऋषभदेव के काल से चला आ रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि, जैनधर्म प्रागैतिहासिक, अति प्राचीन और अनादि है । अतीत काल से प्रचलित धर्म है और उसके संस्थापक भगवान् ऋषभदेव हैं। सम्राट भरत उनके पुत्र थे। इन प्रमाणों के अतिरिक्त अन्य इतिहास के प्रमाण उपलब्ध नहीं होते, क्योंकि भगवान् ऋषभ प्रागैतिहासिक काल में हुए हैं । पुरातात्विक दृष्टि से पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति लगभग अठारह लाख वर्ष पूर्व अफ्रिका में हुई थी, जबकि भारतवर्ष में मनुष्य जाति का आविर्भाव मध्य प्लायस्टोसिन (Middle Pleistocine) काल अर्थात् लगभग दो लाख वर्ष पूर्व माना गया है। प्रारम्भ के पाषाणयुगीन मानवों के औजार तो सरिता के तटों पर उपलब्ध हुए हैं। करीब पच्चीस हजार वर्ष पूर्व के मध्य पाषाणयुगीन मानवों ने शिकार के साथ कन्दमूल का आहार करना भी सीख लिया था, पर ईसा से चार सहस्र वर्ष पूर्व तक भारतीय मानव को मिट्टी के पात्रों का निर्माण करना और कृषि कर्म परिज्ञात नहीं था। क्वेटा के सन्निकट कीली गोल मोहम्मद के पुरातात्त्विक उत्खनन से ज्ञात मिट्टी के पात्र रहित ग्राम्य संस्कृति का समय कार्बन - १४ की प्रविधि से ३६९०-८५ ई. पू. व ३५९१० -५१५ ई. पू. निश्चित किया गया है। इस समय तक पशुपालन और कृषि का प्रारम्भ हो चुका था सिन्धु घाटी सभ्यता के पूर्व की कोटड़जी और कालीबंगा की संस्कृति का समय तीन हजार ई. पूर्व निश्चित किया गया है। जिस समय मिट्टी के पात्र एवं सुव्यवस्थित भव्य भवन बनाने का कार्य प्रारम्भ हो चुका था । सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार सौराष्ट्र तथा पश्चिमी राजस्थान के अतिरिक्त गंगा घाटी में आलमगिरपुर तक था। जिसका समय पच्चीस सौ से अठारह ई. पूर्व माना जाता है। प्रस्तुत आर्येतर संस्कृति के प्रति घृणा के भाव ऋग्वेद के प्रारम्भिक सूक्तों में प्रकट हुए हैं। राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की ताम्राश्मयुगीन ग्राम्य संस्कृति का काल १९०० से ६०० ई. पूर्व तथा गंगा-यमुना की घाटी में विकसित आकर वेयर की ग्राम्य संस्कृति अठारह सौ से ग्यारह सौ ई. पू. और उसी परम्परा में आर्यों से सम्बद्ध की जाने वाली चित्रित सिलेटी पात्रों की संस्कृति का काल ग्यारह सौ ई. पू. माना गया है । "जैनों का मत है कि जैनधर्म 9 भारत के सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ श्री जयचन्द विद्यालंकार ने लिखा हैअति प्राचीन है, और महावीर से पूर्व तेईस तीर्थङ्कर हो चुके हैं, जो उस धर्म के प्रवर्तक एवं प्रचारक थे। सर्वप्रथम तीर्थंकर सम्राट ऋषभदेव थे जिनके एक पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ ।” जैनधर्म के आद्य-संस्थापक भगवान् ऋषभदेव के जन्म, राज्यशासन का मुख्य केन्द्र अयोध्या और २२ २३ अहिंसा वाणी, वर्ष ६, अंक ७ अक्टूबर १९५६, पृ. ३०५ । Jainism, does not derive from Brahman Aryan sources but reflects the cosmology and anthropology of a much old, Pre-Aryan upper class of north-eastern India. -The Philosophies of India, p. 217 Rushabhdev Ek Parishilan 271
SR No.009853
Book TitleAshtapad Maha Tirth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size178 MB
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