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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth करके विशाल (बदरिकाश्रम) में मरुदेवी सहित प्रसन्न मन से घोर तप करते हुए यथाकाल जीवन्मुक्ति को प्राप्त हुए । इस उल्लेख से स्पष्ट है कि बदरिकाश्रम (जिसे बदरी विशाल या विशाला भी कहते हैं) में नाभिराज जीवनमुक्त हुए। इस कारण यह स्थान तीर्थधाम बना । जहाँ माता मरुदेवी ने तपस्या की थी, वहाँ लोगों ने मन्दिर बनाकर उनके प्रति अपनी भक्ति प्रगट की वह मन्दिर माणागांव के निकट है। यह भारतीय सीमा पर अन्तिम भारतीय गाँव है । अलकनन्दा के उस पार माणगाँव है और इस पर माता का मन्दिर है। सम्भवतः जिस स्थान पर बैठकर नाभिराज ने जीवनमुक्ति प्राप्त की थी, उस स्थान पर उनके चरण स्थापित कर दिये गये। ये चरण बदरीनाथ मन्दिर के पीछे पर्वत पर बने हुए हैं। उनके निकट ही भगवान् ऋषभदेव के एक विशाल मन्दिर का भी निर्माण किया गया । यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि यहाँ पर प्रथम चक्रवर्ती भरत ने यह मन्दिर बनवाया था। उन्हों ने कैलाश पर्वत पर जो ७२ स्वर्ण मन्दिर निर्मित कराये थे, बदरी विशाल का मन्दिर उनमें से एक था। बदरी नामक छोटी झाडियां ही यहां मिलती हैं। यहाँ प्राचीन काल में मुनिजन तपस्या किया करते थे। इस कारण यहाँ मुनियों का आश्रम भी रहा होगा। अतः इसे बदरिकाश्रम कहने लगे और यहाँ के मूलनायक भगवान् को बदरीनाथ कहने लगे। आज भी यहाँ मन्दिर और ऋषभदेव की मूर्ति विद्यमान है। इन सब कारणों से स्पष्टतः यह जैनतीर्थ है। सम्राट भरत ने ये मन्दिर एक ही स्थान पर नहीं बनवाये थे, अपितु वे उस विस्तीर्ण पर्वत प्रदेश के उन स्थानों पर बनवाये गये, जहाँ मुनियों ने तपस्या की अथवा जहाँ से उन्हें मुक्ति-लाभ हुआ । Bharat ke Digamber Jain Tirth 85 148 a
SR No.009853
Book TitleAshtapad Maha Tirth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size178 MB
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