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________________ स्थूल कषाय वाले अर्थात् छठे से नवमें गुणस्थान तक २२ परिषह होती हैं। ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने।।१३॥ ज्ञानावरण कम के उदय होने पर प्रज्ञा और अज्ञान परीषह होती दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ।।१४।। दर्शन मोहनीय के उदय से अदर्शन परिषह और अंतराय के उदय से अलाभ परिषह होती हैं। चारित्रमोहेनाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयांचा सत्कारपुरस्काराः।१५।। चारित्र मोहनीय के उदय होने पर नग्नता, अरति स्त्री निषद्या, आक्रोश याचना और सत्कार पुरस्कार ये सात परीषह होती हैं। वेदनीये शेषाः।।१६।। वेदनीय कर्म के उदय होने पर बाकी की क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, बध, रोग, तृणस्पर्श और मल ये ग्यारह परिषह होती हैं। एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नैकोनविंशतिः।१७।। एक जीव में एक को आदि लेकर एक साथ १९ परिषह तक हो सकती हैं। सामायिकच्छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि सूक्ष्म सांपराय यथाख्यातमिति चारित्रम् ।।१८।। १ सामायिक, २ छेदोपस्थापना, ३ परिहारविशुद्धि, ४ सूक्ष्मसांपराय, ५ यथाख्यात इस तरह पाँच प्रकार का चारित्र है।
SR No.009849
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Tattvartha Sutra
File Size1 MB
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