SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्षण एक दिन सुकरातकी कर्कशा स्त्री उनसे झगड़ पड़ी। बड़ा गर्जन-तर्जन किया। लड़ाईकी पूर्णाहुति स्वरूप उसने सुकरातपर गन्दा पानी डाल दिया । सुक़रात मुसकराते हुए बोले--'मैं जानता था तुम गरजनेके बाद बरसोगी भी।' साधना एक बार सुकरातकी पत्नीने गुस्सेमे आकर उनका कोट फाड़ डाला। मगर वे शान्त रहे और पूर्ववत् मुसकराते रहे । उनका एक दोस्त, जो उनसे मिलने आया था, यह सब देखकर बोला-'आपने इनसे कुछ कहा क्यों नहीं ?' सुकरात बोले-'जैसे सईस बिगडैल घोड़ेको साधता है, मैं इसे सुधारनेकी कोशिश करता हूँ। दूसरे, इसकी बदमिजाजी झेलकर दुनियाका दुर्व्यवहार सहना सीखता हूँ।' कैसी गुज़री एक बादशाहने एक फ़कीरको बे-अदब समझकर पकड़वा लिया। उसे रातभर तालाबमें खड़ा रखा । और खुद रनवासमें रागरंगमें मस्त रहा । सुबह होनेपर उसने फ़क़ीरको दरबार में बुलवाकर पूछा-'कहो उस्ताद ! कैसी गुज़री ?' फ़क़ीर बोला-'कुछ तेरी-सी गुज़री, कुछ तेरे-से अच्छी गुजरी !' ब्रह्मर्षि परम प्रतापी क्षत्रिय नरेश तपस्वी विश्वामित्र 'राजर्षि' तो थे ही, 'ब्रह्मषि' बनना चाहते थे। महर्षि वशिष्ठके 'ब्रह्मर्षि' मान लेनेपर उन्हें 'ब्रह्मर्षि' की पदवी मिल सकती थी। सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy