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________________ घरसे निकाल दिया । वह अपने गिरोहके साथ घूमता-फिरता एक नगरके पास पहुँचा। नगरके बाहर, घने जंगलमें पड़ाव डाल दिया गया और विद्युच्चर किसी मालदार असामीकी खोजमें नगरके अन्दर दाखिल हुआ। उसने देखा कि नगरी खूब सजी हुई है और नगरवासी किसीके स्वागतकी तैयारीमें लगे हुए हैं। पूछनेपर मालूम हुआ कि नगरसेठके पुत्र जम्बुकुमार लड़ाई जीतकर आ रहे हैं, उन्हींके स्वागतकी तैयारियां हो रही हैं । कुछ देर में जम्बुकुमारकी सवारी आ पहुँची। विद्युच्चर डाकूकी नज़र उनके गलेमें झूलते हुए बेशकीमती जवाहरातपर पड़ी। डाकूने अपने शिकारको भांपा और मन-ही-मन उसके घर डाका डालनेका संकल्प करता हुआ अपने पड़ावकी ओर चला । ज़म्बुकुमार अभी अविवाहित थे । बचपनसे ही उनका झुकाव वैराग्यकी तरफ़ था। घरमें रहते ज़रूर थे और दुनियादारीके फ़ोंको भी पूरा करते थे लेकिन थे बिलकुल अनासक्त । उन्होंने कई बार घरबार छोड़कर साधु बन जानेका इरादा किया, मगर माँ-बापने मजबूर कर दिया। उनके पिताने यह सोचकर, कि संसारमें फंस जानेपर अपना पुत्र वैरागी न रह सकेगा, उनके विवाहका इन्तजाम किया। आठ रूपवती कन्याएं चुनी गई। जम्बुकुमारने उन कन्याओंके पिताके पास खबर भेज दी कि "विवाह होनेके दूसरे ही दिन मैं घरबार छोड़कर साधु बन जाऊँगा। इसलिए मेरे साथ अपनी कन्याओंको न ब्याहें।' लेकिन कन्याओंने अब दूसरा पति वरण करना स्वीकार न किया। धूमधामसे विवाह हो गया। जब जम्बुकुमार अपनी आठों स्त्रियोंके साथ अपने मकानमें मौजूद थे, विद्युच्चर डाकू कमन्दके ज़रिये खिड़कीपर पहुँचा और बातचीतको आवाज़ सुनकर वहीं ठिठक गया । जम्बुकुमार अपनी पत्नियोंको धर्मोपदेश सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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