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________________ अहिंसा किसी जंगलमें एक भयानक साँप रहता था । एक बार एक सन्त उसके पास से गुज़रे । सांप उनके क़दमोंमें लोटकर अपने उद्धारकी प्रार्थना करने लगा । सन्त बोले- 'किसीको काटा मत कर, तेरा भला होगा ।' साँप काटना छोड़ दिया । उसके इस परिवर्तनकी चर्चा दूर-दूर तक फैल गई। नतीजा यह हुआ कि दुष्ट जन उसे लकड़ी, पत्थर आदिसे मारमारकर सताने लगे । एक बार वही सन्त फिर उधरसे निकले । साँपने अपनी दुःख-गाथा बयान की - 'महाराज, आपने अच्छा उपदेश दिया, मेरा तो जीना ही मुहाल हो गया !' सन्त बोले – 'भाई ! मैंने तुझसे काटनेके लिए मना किया था; यह कब कहा था कि तू फुफकारना भी मत ?” शान्ति चाहिए तो फिर लड़ते क्यों हैं ? [ एक पुरानी जर्मन दन्त-कथा ] एक मूर्ख रास्ते में खड़ा हुआ हथियारबन्द फ़ौज आती हुई देख रहा था । ३८ उसने पूछा- 'ये लोग कहाँसे आ रहे हैं ?" 'शान्ति में से ।' 'कहाँ जा रहे हैं ?' 'युद्ध में ।' 'युद्धमें ये क्या करते हैं ?' 'दुश्मनोंको मारते हैं, उनके शहरोंको जलाते हैं,............' सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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