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________________ अभेद शुकदेव ब्रह्मज्ञान सीखनेके लिए जनकके पास गये। जनक बोले'गुरुदक्षिणा पहले दे दो। ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के बाद तुम गुरुदक्षिणा नहीं दोगे, क्योंकि ब्रह्मज्ञानी गुरु और शिष्यमे भेद नहीं देखता ।' सन्त तुकाराम सन्त तुकाराम अत्यन्त निर्धन थे। परन्तु अपने बड़े परिवारके भरणपोपणका सारा बोझ उन्हींपर था और इधर तुकाराम संसारी आदमी थे ही नहीं ! एकबार खेतमें गन्ने तैयार हुए। तुकारामजीने गन्ने काटे और बाँधकर सिरपर रवखे, गन्ने बिकें तो घरवालोंके मुँहमें अन्न जाय । लेकिन रास्तेमें बच्चे इनके पोछे लगकर गन्ने माँगने लगे। जो सबमें अपने प्रभुको ही देखते हों, कैसे मना कर दें ? गन्ने बच्चोंको बाँट दिये। सिर्फ एक गन्ना बचा जिसे लेकर वे घर पहुँचे । उनकी पहली स्त्री रखुमाई बड़े चिड़चिड़े स्वभावकी थी। जब पतिदेवको केवल एक गन्ना लाते देखा तो सारी कैफ़ियत समझ गई। क्रोधसे आगबबूला हो गई। उसने तुकारामके हाथसे गन्ना छीनकर उसे उनकी पीटपर ज़ोरसे मारा। टूटकर गन्ने के दो टुकड़े हो गये। तुकारामके मुखपर क्रोधके बदले हँसी आ गई। बोले-'हम दोनोंके लिए गन्ने के दो टुकड़े मुझे करने ही पड़ते। तुमने बिना कहे ही यह काम कर दिया। कैसी साध्वी हो तुम !' ३० सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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