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________________ लगा। पर घास बड़ी उगी हुई थी इसलिए रास्ता साफ़ न दिखनेके कारण वह एक कुएंमें जा गिरा। उसमें पानी ज्यादा नहीं था, पर वहाँ एक भयंकर साँप था । उसे देखकर आदमी एक पेड़की जड़के सहारे ऊपर चढ़ने लगा और किनारे पर उगे हुए एक वृक्षकी डालको पकड़कर लटक गया। एक सफ़ेद और एक काला चूहा उस डालको काट रहे थे। नीचे सांप मुँह फाड़े उसके गिरनेकी बाट देख रहा था। उस वृक्षपर मधुमक्खियोंका एक छत्ता था, जिससे कभी-कभी एक बूंद शहद टपकता था और उस आदमीकी नाकपर पड़ता था जिसे चाटकर वह सुख अनुभव करता था। ऐसा है दुनियाका सुख ! खोटा वेदान्त एक न्यायाधीश था। वह बड़ा भक्त था। एक बार एक चोर उसके सामने लाया गया। चोरने अपना जुर्म कबूल किया। सज़ा देनेसे पहले न्यायाधीश बोला 'तुझे और कुछ कहना हो तो कह सकता है।' चोर गम्भीर होकर कहने लगा-'जज साहब ! आज आपके सामने खड़ा रहने में मुझे बड़ा आनन्द हो रहा है। मैंने सुना है कि आप बड़े भक्त हैं। मुझे सिर्फ यही कहना है कि मैंने अपने वश चोरी नहीं की। भगवान्ने मुझे जैसी प्रेरणा दी वैसा मैंने किया। उसकी इच्छासे मेरे हाथों चोरी हुई है। इसलिए उसके लिए मुझे दोषो न ठहरायें।' चोरकी बात सुनकर कचहरीवाले देखते-के-देखते रह गये । लेकिन न्यायाधीश पक्का निकला। उसने फैसला दिया-'चोरका कहना मुझे पूरी तरह मान्य है । जिस भगवान्ने उसे चोरी करनेकी प्रेरणा सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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