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________________ कल्पना एक आदमी बहुत भूखा था, मगर उसे कुछ खानेको नहीं मिल रहा था। आखिर उसे एक तदबीर सूझी। वह एक जगह आँखें बन्द करके बैठ गया और कल्पना करने लगा कि उसके सामने गरमागरम चटपटी मसालेदार कढ़ी है और वह उसे दबादब खाये जा रहा है और उसका मुँह जलता जा रहा है । इस कल्पनाकी कढ़ीसे मुंह जलनेके कारण वह 'सी सी' भी करता जा रहा था । __ इतने में एक आदमी उधरसे गुज़रा । उसने पूछा-'भाई, यह 'सी-सी' क्यों कर रहे हो ?' 'कल्पनाकी गरम-गरम कढ़ी खा रहा हूँ।' आगन्तुक बोला-'अगर कल्पनाका ही आहार लेना है तो कढ़ी सरीखी मामूली चीज़ क्यों खाते हो, बढ़िया बढ़िया मिठाइयां क्यों नहीं खाते ?' उद्धार एक सन्त हमेशा लोगोंका भला करनेमें लगे रहते थे, तो भी कुछ दुष्टात्मा उन्हें अकारण कष्ट दिया करते थे । ____एक रोज़ एक दुर्जन उनके पास आकर यहा-तद्वा बकने लगा । सन्तने उसे प्रेमपूर्वक समझानेका प्रयत्न किया; मगर वह तो गालियाँ देने लगा! कुछ देर बाद सन्त अपने घरकी और चले तो वह आदमी भी गाली देता हुआ उनके पीछे-पीछे चलने लगा। जब घर आ गया तो सन्त बोले---'भाई, अब तू मेरे घर ही रह, ताकि गालियां देनेके लिए तुझे चलकर न आना पड़े।' वह आदमी सचमुच सन्तके घर रहनेके लिए तैयार हो गया। वहाँ रहकर सन्तका उच्च जीवन देखकर वह बड़ा शर्मिन्दा हुआ। उसके बाद तो वह वहाँ रहकर सन्तको सेवा भी करने लगा। १२४ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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