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________________ अध्याय - 10 सम्यग्दृष्टि स्वभाव से देखता, जानता और त्यागता है - जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं जाणदि णादा वि सएण भावेण॥ (10-54-361) जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं पस्सदि जीवो वि सएण भावेण॥ (10-55-362) जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं विजहदि णादा वि सएण भावेण॥ (10-56-363) जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं सद्दहदि सम्मादिट्ठी सहावेण॥ (10-57-364) जैसे सफेदी-खड़िया अपने स्वभाव से ही परद्रव्य (दीवाल आदि) को सफेद करती है, उसी प्रकार ज्ञाता आत्मा भी अपने स्वभाव से परद्रव्य को जानता है। जैसे सफेदी-खड़िया अपने स्वभाव से ही परद्रव्य (दीवाल आदि) को सफेद करती है, उसी प्रकार जीव भी अपने स्वभाव से परद्रव्य को देखता है। जैसे सफेदी-खड़िया अपने स्वभाव से ही परद्रव्य (दीवाल आदि) को सफेद करती है, उसी प्रकार ज्ञाता आत्मा भी अपने स्वभाव से परद्रव्य को त्यागता है। जैसे सफेदी-खड़िया अपने स्वभाव से ही परद्रव्य (दीवाल आदि) को सफेद करती है, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि अपने स्वभाव से परद्रव्य का श्रद्धान करता है। 171
SR No.009847
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size2 MB
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