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________________ अध्याय - 10 Note: Now onwards, till the end of this scripture, is contained the chūlikā. (A synopsis of explicit or inexplicit explanations and meanings of the subject matter is termed a chulikā.) कर्तृत्व मानने वालों को मोक्ष नहीं लोगस्स कुदि विहू सुरणारयतिरियमाणुसे सत्ते । समणाणं पि य अप्पा जदि कुव्वदि छव्विहे काये ॥ (10-14-321) लोगसमणाणमेवं सिद्धंतं पडि ण दिस्सदि विसेसो । लोगस्स कुदि विहू समणाणं अप्पओ कुणदि ॥ (10-15-322) एवं ण को वि मक्खो दिस्सदि लोगसमणाणं दोन्हं पि । णिच्चं कुव्वंताणं सदेवमणुयासुरे लोगे ॥ (10-16-323) लोक के मत में सुर, नारक, तिर्यञ्च और मनुष्य प्राणियों को विष्णु करता है और यदि श्रमणों के मतानुसार भी आत्मा छह काय के जीवों को (जीवों के कार्यों को) करता है तो इस प्रकार लोक ओर श्रमणों में सिद्धान्तों की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं दीखता। लोक के मत में विष्णु करता है और श्रमणों के मत में आत्मा करता है। इस प्रकार देव, मनुष्य और असुर लोकों को सदा करते हुए (कर्ताभाव से प्रवर्त्तमान) लोक और श्रमण दोनों का भी कोई मोक्ष दिखाई नहीं देता। 154 According to ordinary people, Vişņu is the creator of celestial-,
SR No.009847
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size2 MB
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