SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय - 10 दहमो सव्वविसुद्धणाणाधियारो THE ALL-PURE KNOWLEDGE जीव अपने परिणामों का कर्ता है - दवियं जं उप्पज्जदि गुणेहि तं तेहि जाणसु अणण्णं। जह कडयादीहिं दु य पज्जएहि कणयमणण्णमिह॥ (10-1-308) जीवस्साजीवस्स य जे परिणामा दु देसिदा सुत्ते। तं जीवमजीवं वा तेहिमणण्णं वियाणाहि॥ (10-2-309) ण कुदोचि वि उप्पण्णो जम्हा कज्जं ण तेण सो आदा। उप्पादेदि ण किंचि वि कारणमवि तेण ण सो होदि॥ (10-3-310) कम्मं पडुच्च कत्ता कत्तारं तह पडुच्च कम्माणि। उप्पज्जते णियमा सिद्धी दु ण दिस्सदे अण्णा॥ (10-4-311) जो द्रव्य जिन गुणों से उत्पन्न होता है, उसे उन गुणों से अनन्य जानो। जैसे लोक में कटक आदि पर्यायों से स्वर्ण भिन्न नहीं है। जीव और अजीव के जो परिणाम सूत्र में कहे हैं, उन परिणामों से उस जीव और अजीव को अनन्य जानो; क्योंकि वह आत्मा किसी से उत्पन्न नहीं हुआ, इसलिए वह किसी का कार्य नहीं है; किसी अन्य को . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 148
SR No.009847
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy