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________________ २३० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद स्थापन कर लिया जाता है, वह स्थापनासंख्या है । नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नाम यावत्कथिक होता है लेकिन स्थापना इत्वरिक भी होती है और यावत्कथिक भी होती है । द्रव्यशंख का क्या तात्पर्य है ? दो प्रकार का - आगमद्रव्यशंख, नोआगमद्रव्यशंख । आगमद्रव्यशंख (संख्या) का स्वरूप इस प्रकार है - जिसने शंख (संख्या) यह पद सीखा लिया, हृदय में स्थिर किया, जित किया मित किया, अधिकृत कर लिया यावत् निर्दोष स्पष्ट स्वर से शुद्ध उच्चारण किया तथा गुरु से वाचना ली, जिससे वाचना, पृच्छना, परावर्तना एवं धर्मकथा से युक्त भी हो गया परन्तु जो अर्थ का अनुचिन्तन करने रूप अनुप्रेक्षा से रहित हो, उपयोग न होने से वह आगम से द्रव्यशंख (संख्या) कहलाता है । क्योंकि सिद्धान्त में 'अनुपयोगो द्रव्यम्' - उपयोग से शून्य को द्रव्य कहा है । ( नैगमनय की अपेक्षा) एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्यशंख, दो अनुपयुक्त आत्मा दो आगमद्रव्यशंख, तीन अनुपयुक्त आत्मा तीन आगमद्रव्यशंख हैं । इस प्रकार जितनी अनुपयुक्त आत्मायें हैं उतने ही द्रव्यशंख हैं । व्यवहारनय नैगमनय के समान ही मानता है । संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्यशंख और अनेक अनुपयुक्त आत्मायें अनेक आगमद्रव्यशंख, ऐसा स्वीकार नहीं करता किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यशंख मानता है । ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक आगमद्रव्यशंख है । तीनों शब्द नय अनुपयुक्त ज्ञायक को अवस्तु मानते । क्योंकि यदि ज्ञायक है तो अनुपयुक्त नहीं होता है और यदि अनुपयुक्त हो तो वह ज्ञायक नहीं होता है । इसलिये आगमद्रव्यशंख संभव नहीं है । नो आगमद्रव्यसंख्या क्या है ? तीन भेद हैं-ज्ञायकशरीद्रव्यसंख्या, भव्यशरीरद्रव्यसंख्या, ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यसंख्या । संख्या इस पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का वह शरीर, जो व्यपगत हो गया हो, त्यक्त देह यावत् जीवरहित शरीर को देखकर कहना - अहो ! इस शरीर रूप पुद्गलसंघात ने संख्या पद को ग्रहण किया था, पढ़ा था यावत् उपदर्शित किया था - समझाया था, ( उसका वह शरीर ज्ञायकशरीर द्रव्यसंख्या है ।) इसका कोई दृष्टान्त है ? हां, है यह घी का घड़ा है । यह ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या का स्वरूप है । जन्म समय प्राप्त होने पर जो जीव योनि से बाहर निकला और भविष्य में उसी शरीरपिंड द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार संख्या पद को सीखेगा ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यसंख्या है । इसका कोई दृष्टान्त है ? यह घृतकुंभ होगा । यह भव्यशरीद्रव्यसंख्या का स्वरूप है । ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यशंख के तीन प्रकार हैं- एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र । एकभविक जीव 'एकभविक' ऐसा नाम वाला कितने समय तक रहता है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एक पूर्व कोटि पर्यन्त रहता है । बध्धायुष्क जीव बद्धायुष्क रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एक पूर्वकोटि वर्ष के तीसरे भाग तक रहता है । अभिमुखनामगोत्र (शंख) का अभिमुखनामगोत्र नाम कितने काल तक रहता है ? जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रहता है । नैगमनय, संग्रहनय और व्यवहारनय एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र तीनों प्रकार के शंखों को शंख मानते हैं । ऋजुसूत्रनय १. बद्धायुष्क और २. अभिमुखनामगोत्र, ये दो प्रकार के शंख स्वीकार करता है । तीनों शब्दनय मात्र अभिमुखनामगोत्र शंख को ही शंख मानते हैं । औपम्यसंख्या क्या है ? उपमा देकर किसी वस्तु के निर्णय करने को औपम्यसंख्या
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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