SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नदीसूत्र - १३६ १६१ द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से सादि- सान्त है, और द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से आदि अन्त रहित है । यह श्रुतज्ञान संक्षेप में चार प्रकार से वर्णित किया गया है, जैसे- द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से, एक पुरुष की अपेक्षा से सादिसपर्यवसित है । बहुत से पुरुषों की अपेक्षा अनादि अपर्यवसित है । क्षेत्र से पाँच भरत और पाँच ऐरावत क्षेत्रों की अपेक्षा सादि - सान्त है । पाँच महाविदेह की अपेक्षा से अनादि - अनन्त है । काल से सम्यक् श्रुत उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल की अपेक्षा सादि - सान्त है । अवस्थित काल की अपेक्षा अनादि-अनन्त है । भाव से सर्वज्ञ - सर्वदर्शी जिन तीर्थकरों द्वारा जो भाव-पदार्थ जिस समय सामान्यरूप या विशेष रूप से कथन किये जाते हैं, हेतु दृष्टान्त के उपदर्शन से जो स्पष्टतर किये जाते हैं और उपनय तथा निगमन से जो स्थापित किये जाते हैं, तब उन भावों की अपेक्षा से सादि- सान्त है । क्षयोपशम भाव की अपेक्षा से सम्यक् श्रुत अनादि - अनन्त है । अथवा भवसिद्धिक प्राणी का श्रुत सादि - सान्त है, अभवसिद्धिक का मिथ्या श्रुत अनादि और अनन्त है । सम्पूर्ण आकाश-प्रदेशों का समस्त आकाश प्रदेशों के साथ अनन्त बार गुणाकार करने से पर्याय अक्षर निष्पन्न होता है । सभी जीवों के अक्षर- श्रुतज्ञान का अनन्तवाँ भाग सदैव उद्घाटित रहता है । यदि वह भी आवरण को प्राप्त हो जाए तो उससे जीवात्मा अजीवभाव को प्राप्त हो जाए । बादलों का अत्यधिक पटल ऊपर आ जाने पर भी चन्द्र और सूर्य की कुछ न कुछ प्रभा तो रहती ही है । इस प्रकार सादि- सान्त और अनादि - अनन्त श्रुत का वर्णन है । [१३७] गमिक श्रुत क्या है ? आदि, मध्य या अवसान में कुछ शब्द-भेद के साथ उसी सूत्र को बार-बार कहना गमिक श्रुत है । दृष्टिवाद गमिक श्रुत है । गमिक से भिन्न आचाराङ्ग आदि कालिकश्रुत अंगमिक श्रुत हैं । अथवा श्रुत संक्षेप में दो प्रकार का है अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य । अङ्गबाह्य दो प्रकार का है- आवश्यक, आवश्यक से भिन्न । आवश्यक - श्रुत छह प्रकार का है - सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान | - आवश्यक व्यतिरिक्त श्रुत कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का, कालिक - जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम और अन्तिम प्रहर में स्वाध्याय किया जाता है । उत्कालिक - जो कालिक से भिन्न काल में भी पढ़ा जाता है । उत्कालिक श्रुत अनेक प्रकार का है, जैसेदशवैकालिक, कल्पाकल्प, चुल्लकल्पश्रुत, महाकल्पश्रुत, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नन्दी, अनुयोगद्वार देवेन्द्रस्तव, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रविद्या, सूर्यप्रज्ञप्ति, पौरुषीमंडल, मण्डलप्रदेश, विद्याचरणविनिश्चय, गणिविद्या, ध्यानविभक्ति, मरणविभक्ति, आत्मविशुद्धि, वीतरागश्रुत, संलेखनाश्रुत, विहारकल्प, चरणविधि, आतुरप्रत्याख्यान और महाप्रत्याख्यान इत्यादि । यह उत्कालिक श्रुत का वर्णन हुआ । कालिक - श्रुत कितने प्रकार का है ? अनेक प्रकार का, उत्तराध्ययन, दशा, कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ, ऋषिभाषित, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, क्षुद्रिकाविमानविभक्ति, महल्लिकाविमानप्रविभक्ति, अङ्गचूलिका, वर्गचूलिका, विवाहचूलिका. अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलन्धरोपपात, देवेन्द्रोपपात, 12 11
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy