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________________ नन्दीसूत्र-१०४ १५७ बनती है और जिससे प्रशंसा प्राप्त होती है, वह कर्मजा बुद्धि है ।। [१०५] सुवर्णकार, किसान, जुलाहा, दर्वीकार, मोती, घी, नट, दर्जी, बढ़ई, हलवाई, घट तथा चित्रकार । इन सभी के उदाहरण कर्म से उत्पन्न बुद्धि के हैं । [१०६] -अनुमान, हेतु और दटान्त से कार्य को सिद्ध करने वाली, आयु के परिपक्क होने से पुष्ट, लोकहितकारी तथा मोक्षरूपी फल प्रदान करनेवाली बुद्धि पारिणामिकी है । [१०७-१०९] अभयकुमार, सेठ, कुमार, देवी, उदितोदय, साधु, नन्दिघोष, धनदत्त, श्रावक, अमात्य, क्षपक, अमात्यपुत्र, चाणक्य, स्थूलभद्र, नासिक का सुन्दरीनन्द, वज्रस्वामी, चरणाहत, आंबला, मणि, सर्प, गेंडा, स्तूपभेदन-यह सब पारिणामिक बुद्धि के दृष्टान्त है । [११०] यह हुआ अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान | [१११] श्रुतिनिश्रित मतिज्ञान कितने प्रकार का है ? चार प्रकार का अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । [११२] -अवग्रह कितने प्रकार का है ? दो प्रकार से है । अर्थावग्रह, व्यंजनावग्रह। [११३] -व्यंजनावग्रह कितने प्रकार का है ? चार प्रकार का है । श्रोत्रेन्द्रियव्यंजनावग्रह, घ्राणेन्द्रियव्यंजनावग्रह, जिह्वेन्द्रियव्यंजनावग्रह, स्पर्शेन्द्रियव्यंजनावग्रह । [११४] -अर्थावग्रह कितने प्रकार का है ? छह प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियअर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रियअर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रियअर्थावग्रह, जिह्वेन्द्रियअर्थावग्रह, स्पर्शेन्द्रियअर्थावग्रह और नोइन्द्रियअर्थावग्रह । [११५] -अर्थावग्रह के एक अर्थवाले, नाना घोष तथा नाना व्यञ्जन वाले पांच नाम हैं । यथा-अवग्रहणता, उपधारणता, श्रवणता, अवलम्बनता और मेधा । [११६] ईहा छह प्रकार की, श्रोत्रेन्द्रिय-ईहा, चक्षु-इन्द्रिय-ईहा, घ्राण-इन्द्रिय-ईहा, जिह्वाइन्द्रिय-ईहा, स्पर्श-इन्द्रिय-ईहा और नोइन्द्रिय-ईहा । ईहा के एकार्थक, नानाघोष और नाना व्यंजन वाले पाँच नाम हैं-आभोगनता, मार्गणता, गवेषणता, चिन्ता तथा विमर्श । [११७] -अवाय मतिज्ञान कितने प्रकार का है ? छह प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय, चक्षुरिन्द्रिय-अवाय, घ्राणेन्द्रिय-अवाय, रसनेन्द्रिय-अवाय, स्पर्शेन्द्रिय-अवाय, नोइन्द्रिय-अवाय। अवाय के एकार्थक, नानाघोष और नानाव्यंजन वाले पाँच नाम हैं-आवर्तनता, प्रत्यावर्त्तनता, अवाय, बुद्धि, विज्ञान ।। [११८] धारणा छह प्रकार की, श्रोत्रेन्द्रिय-धारणा, चक्षुरिन्द्रिय-धारणा, घ्राणेन्द्रियधारणा, रसनेन्द्रिय-धारणा, स्पर्शेन्द्रिय-धारणा, नोइन्द्रिय-धारणा | धारणा के एक अर्थवाले, नाना घोप और नाना व्यंजन वाले पाँच नाम हैं-धारणा, साधारणा, स्थापना, प्रतिष्ठा और कोष्ठ । [११९] अवग्रह ज्ञान का काल एक समय मात्र का है । ईहा का अन्तर्मुहर्त, अवाय भी अन्तर्मुहर्त तथा धारणा का काल संख्यात अथवा असंख्यात काल है । [१२०] -चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा, इस प्रकार अट्ठाईसविध मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूँगा । कोई व्यक्ति किसी गुप्त पुरुष को-“हे अमुक ! हे अमुक !'' इस प्रकार कह कर जगाए । “भगवन् ! क्या ऐसा संवोधन करने पर उस पुरुष के कानों में एक समय में प्रवेश किए हुए पुद्गल ग्रहण करने
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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