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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद बनें । फिर यह बच्चा दुःखी होकर जी शकेगा । और राजलक्ष्मी मेरे पुत्र को प्राप्त होगी । उस दुष्ट चिन्तवन के फल रूप वो कर्म के दोष से उत्पन्न होने के साथ ही उसकी माँ मर गइ उसके बाद हे गौतम ! उस सुज्ञशिव पिताने काफी क्लेश से बिनती करके नए बच्चों को जन्म देनेवाली माता ने घर-घर घुमकर आराधना की उस पुत्री का बचपन पूर्ण हआ । उतने में माँपुत्र का सम्बन्ध टालनेवाले महा भयानक बारह वर्ष के लम्बे अरसे का अकाल समय आ पहुँचा | जितने में रिश्तेदारी का त्याग करके समग्र जनसमूह चला गया तब किसी दिन कई दिन का भूखा, विषाद पाया हुआ वो सुज्ञशिव सोचने लगा कि क्या अब इस बच्ची को मार डाल के भूख पूरी करूँ या उसका माँस बेचकर किसी वणिक के पास से राशन खरीदकर अपने प्राण को धरूँ । अब जीने के लिए दुसरा कोई भी उपाय मेरे पास नहीं बचा, या तो वाकई मुजे धिक्कार है । ऐसा करना उचित नहीं है । लेकिन उसे जिन्दा ही बेच दूं । ऐसा सोचकर महाऋद्धिवाले चौदह विद्यास्थान के पारगामी ऐसे गोविंद, ब्राह्मण के घर सुज्ञश्री को बेच दी इसलिए कईं लोगो को नफरत के शब्द से घायल वो अपने देश का त्याग करके सुज्ञशिव दुसरे देशान्तर में चला गया । वहाँ जाकर भी उसी के अनुसार दुसरी कन्या का अपहरण करके दुसरी जगह बेच-बेचकर सुज्ञशिव ने काफी द्रव्य उपार्जन किया । उस अवसर पर अकाल के समय के कछ ज्यादा आँठ वर्ष पसार हए तब वो गोविंद शेठ का समग्र वैभव का क्षय हुआ । हे गौतम ! वैभव विनाश पाने की वजह से विषाद पाए हुए गोविंद ब्राह्मण ने चिन्तवन किया कि अब मेरे परिवार का विनाशकाल नजदीक है । विषाद पानेवाले मेरे बँधु को आधा पल भी देखने के लिए समर्थ नहीं है । तो अब मैं क्या करूँ ? ऐसा सोचते हुए एक गोकुल के स्वामी की भार्या आई खाने की चीजे बेचनेवाली उस गोवालण के पास से उस ब्राह्मण की भार्या ने डाँगर के नाप से भी घी और शक्कर के बनाए हए चार लड्डू खरीद किए । खरीद करते ही बच्चे लडड खा गए । महीयारी ने कहा कि अरे शेठानी ! हमें बदले में देने की डाँगर की पाली दे दो । हमें जल्द गोकुल में पहुँचना है । हे गौतम ! उसके बाद ब्राह्मणी ने सुज्ञश्री को आज्ञा दी कि अरे राजाने जो कुछ भेजा है, उसमें जो डाँगर की मटकी है । उसे जल्द ढूँढ़कर लाओ जिससे यह गोवालण को दूँ | सुज्ञश्री जितने में वो ढूँढ़ने के लिए घर में गइ लेकिन उस तंदुल का भाजन न देखा । ब्राह्मणी ने कहा कि नहीं है । फिर ब्राह्मणी ने कहा, अरे ! कुछ भाजन ऊपर करके उसमें देखो और ढूँढ़कर लाओ । फिर से देखने के लिए आँगन में गइ और न देखा तब ब्राह्मणी ने खुद वहाँ आकर देखा तो उसको भी भाजन न मिला । काफी विस्मय पानेवाली उसने फिर से हरएक जगह पर देखने लगी । दोहरान एकान्त जगह में वेश्या के साथ ओदन का भोजन करनेवाले बड़े पुत्र को देखा । उस पुत्रने भी उनकी ओर नजर की । सामने आनेवाली माता को देखकर अधन्य पुत्रने चिन्तवन किया कि आम तोर पर माता हमारे चावल छिन लेने के लिए आती हुई दिखती है, यदि वो पास आएगी तो मैं उसे मार डालूँगी - ऐसा चिन्तवन करते पुत्रने दूर रहे और पास आनेवाली ब्राह्मणी माँ को बड़े शब्द में कहा कि...हे भट्टीदारिका ! यदि तूं यहाँ आएगी तो फिर तुम ऐसा मत कहना कि मुजे पहले न कहा । यकीनन मैं तुम्हें मार डालूँगा। ऐसा अनिष्ट वचन सुनकर उल्कापात से वध की हुई हो वैसे धस करते हुए भूमि पर गिर पड़ी। मूविश ब्राह्मणी बाहर से वापस न आइ इसलिए महीयारी ने कुछ देर राह देखने के बाद
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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