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________________ ८६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद जल्दबाझी में प्रतिकूल चीज ग्रहण करने के बाद तुरन्त ही निरुपद्रव स्थान में न परठवे तो उपवास, अकल्प्य चीज भीक्षा में ग्रहण करने के बाद यथायोग्य उपवास आदि, कल्प्य चीज का प्रतिबंध करे तो उपस्थापन, गोचरी लेने के लिए नीकला भिक्षु बाते - विकथा की प्रस्तावना करे, उदीरणा करे, कहने लगे, सुने तो छठ्ठ प्रायश्चित् गोचरी करके वापस आने के बाद लाए गए आहार, पानी, औषध जिसने दिए हो, जिस तरह ग्रहण किया हो, उसके अनुसार और उस क्रम से न आलोवे तो पुरिमुह, इरियम् प्रतिक्रमे बिना चावल - पानी न आलोवे, तो पुरिमुड, रजयुक्त पाँव का प्रमार्जन किए बिना इरिया प्रतिक्रमे तो पुरिमुड, इरिया० पड़िक्कमने की ईच्छावाले पाँव के नीचे की भूमि के हिस्से की तीन बार प्रमार्जन न करे तो निवी, कान तक और होठ पर मुहपति रखे बिना इरिया प्रतिक्रमे तो मिच्छामि दुक्कड़म् और पुरिमु । सज्झाय परठवते - गोचरी आलोवते धम्मो मंगलम् की गाथा का परावर्तन किए बिना चैत्य और साधु को बन्दे बिना पञ्चक्खाण पूरे करे तो पुरिमुड, पच्चक्खाण पूरे किए बिना भोजन, पानी या औषध का परिभोग करे तो चोथभक्त, गुरु के सन्मुख पच्चक्खाण न पारे तो, उपयोग न करे, प्राभृतिक न आलोवे, सज्झाय न परठवे, इस हर एक प्रस्थापन में, गुरु भी शिष्य की और उपयोगवाले न बने तो उनको पारंचित प्रायश्चित् साधर्मिक, साधु को गोचरी में से आहारादिकदिए बिना भक्ति किए बिना कुछ आहारादिक परिभोग करे तो छठ्ठ, भोजन करते, परोंसते यदि नीचे गिर जाए तो छट्ठ, कटु, तीखे, कषायेल, खट्टे, मधुर, खारे रस का आस्वाद करे, बार-बार आस्वाद करके वैसे स्वादवाले भोजन करे तो चोथ भक्त, वैसे स्वादिष्ट रस में राग पाए तो खमण या अठ्ठम, काऊस्सग्ग किए बिना विगइ का इस्तेमाल करे तो पाँच आयंबिल, दो विगइ से ज्यादा विगइ का इस्तेमाल करे तो पाँच निर्विकृतिक, निष्कारण विगइ का इस्तेमाल करे तो अठ्ठम, ग्लान के लिए अशन, पान, पथ्य, अनुपान ही आए हो और बिना दिया गया इस्तेमाल करे तो पारंचित । लान की सेवा - मावजत किए बिना भोजन करे तो उपस्थापन, अपने - अपने सारे कर्तव्य का त्याग करके ग्लान के कार्य का आलम्बन लेकर अपने कर्तव्य में प्रमाद का सेवन करे तो वो अवंदनीय, ग्लान के उचित जो करनेलायक कार्य न कर दे तो अठ्ठम, ग्लान, बुलाए और एक शब्द बोलने के साथ तुरन्त जाकर जो आज्ञा दे उसका अमल न करे तो पारंचित, लेकिन यदि वो ग्लान साधु स्वस्थ चित्तवाला हो तो । यदि सनेपात आदि कारण से भ्रमित मानसवाले हो तो जो उस ग्लान से कहा हो वैसा न करना हो । उसके उचित हितकारी जो होता हो वो ही करना, प्लान के कार्य न करे उसे संघ के बाहर नीकालना । आधाकर्म, औदेशिक, पूर्तिकर्म, मिश्रजात, स्थापना, प्राभृतिका, प्रादुष्करण, क्रीत, प्रामित्यक, अभ्याहृत, उद्भिन्न, मालोपहृत, आछेद्य, अनिसृष्ट, अध्यवपुरक, धात्री, दुत्ति, निमित्त, आजीवक, वनीपक, चिकित्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, पूर्वपश्चात् संस्तव, विद्या, मंत्र, चूर्ण, योग, मूल कर्मशक्ति, ग्रक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संहृत, दायक, उद्भिन्न, अपरिणत, लिप्त, छर्दित, इन बियालीश आहार के दोष में से किसी भी दोष से दुषित आहारपानी औषध का परिभोग करे तो यथायोग्य क्रमिक उपवास, आयंबिल का प्रायश्चित् देना । छ कारण के गैरमोजुदगी में भोजन करे तो अठ्ठम, धुम्रदोष और अंगार दोषयुक्त, आहार का भोगवटा करे तो उपस्थापन, अलग-अलग आहार या स्वादवाले संयोग करके जिह्वा
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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