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________________ महानिशीथ-७/-/१३७५ ७९ हे गौतम ! उस कारण से उसे प्रायश्चित् से विशुद्धि का उपदेश देना लेकिन दुसरे तरीके से नहीं उसमें जिन-जिन प्रायश्चित् के स्थानक में जहाँ जहाँ जितना प्रायश्चित् बताया है उसे ही-यकीनन अवधारित प्रायश्चित् कहते है । हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा है ? हे गौतम ! यह प्रायश्चित् सूत्र अनंतर अनंतर क्रमवाले है, कइ भव्यात्मा चार गति रूप संसार के कैदखाने में से बद्ध स्पृष्ट, निकाचित दुःख से करके मुक्त कर शके वैसे घोर पूर्व भव में किए कर्म रूप बेडी को तोड़कर जल्द मुक्त होंगे । यह प्रायश्चित् सूत्र कइ गुण समुद्र से युक्त दृढव्रत और चारित्रवंत हो, एकान्ते योग्य हो उनको आगे बताएंगे वैसे प्रदेश में दुसरा न सुन शके वैसे पढ़ाना, प्ररूपणा करना और जिसकी जितने प्रायश्चित् से श्रेष्ठ विशुद्धि हो शके उस अनुसार उसे राग-द्वेष रहितरूप से धर्म में अपूर्व रस पेदा हो वैसे वचन से उत्साहित करके यथास्थित न्यूनाधिक नहीं वैसा ही प्रायश्चित् देना । इस कारण से वैसा ही प्रायश्चित् प्रमाणित और टंकशाली है । उसे निश्चित् अवधारित प्रायश्चित् कहा ।। [१३७६-१३७७] हे भगवंत ! कितने प्रकार के प्रायश्चित् उपदेश है ? हे गौतम ! दश प्रकार के प्रायश्चित् उपदेशेल है, उस पारंचित तक में कई प्रकार का है । हे भगवंत ! कितने समय तक इस प्रायश्चित् सूत्र के अनुष्ठान का वहन होगा ? हे गौतम ! कल्की नाम का राजा मर जाएगा । एक जिनालय से शोभित पृथ्वी होगी और श्रीप्रभ नाम का अणगार होगा तब तक प्रायश्चित् सूत्र का अनुष्ठान वहन होगा । हे भगवंत ! उसके बाद क्या होगा? उसके बाद कोइ पुण्यभागी नहीं होगा कि जिन्हें यह श्रुतस्कंध प्ररूपाएगा । १३७८ हे भगवंत ! प्रायश्चित के कितने स्थान है ? हे गौतम ! प्रायश्चित के स्थान संख्यातीत बताए है । हे भगवंत ! वो संख्यातीत प्रायश्चित् स्थान में से प्रथम प्रायश्चित् का पद कौन-सा है ? हे गौतम ! प्रतिदिन क्रियासम्बन्धी का जानना । हे भगवंत ! वो प्रतिदिन क्रिया कौन-सी कहलाती है ? हे गौतम ! जो बार-बार रात-दिन प्राण के विनाश से लेकर संख्याता आवश्यक कार्य के अनुष्ठान करने तक के आवश्यक करना । हे भगवंत ! आवश्यक ऐसा नाम किस कारण से कहा जाता है ? हे गौतम ! सम्पूर्ण समग्र आँठ कर्म का क्षय करनेवाला उत्तम सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, काफी घोर वीर उग्र कष्टकारी दुष्करतप आदि की साधना करने के लिए प्ररूपे । तीर्थंकर आदि को आश्रित करके अपने-अपने बाँटे हुए, बताए हुए नियमित समय समय की जगह-जगह रात-दिन हर एक समय जन्म से लेकर जो यकीनन किया जाए, साधना की जाए, उपदेश, प्ररूपणा से हमेशा समजाया जाए, इस कारण से गौतम ! ऐसा कहते है कि यह अवश्य करने लायक अनुष्ठान है । उसे आवश्यक कहते है । हे गौतम ! जो भिक्षु उस अनुष्ठान के समय समय का उल्लंघन करते है, उसमें ढील करते है । अनुपयोगवाला प्रमादी होता है, अविधि करने से दुसरों को अश्रद्धा पेदा करनेवाला होता है, बल और वीर्य होने के बावजूद किसी भी आवश्यक में प्रमाद करनेवाला होता है, शातागारव या इन्द्रिय की लंपटता का कोइ आलंबन पकड़कर देर करके या उतावला होकर बताए गए समय पर अनुष्ठान नहीं करता । वो साधु महा प्रायश्चित् पाता है । [१३७९] हे भगवंत ! प्रायश्चित् का दुसरा पद क्या है ? हे गौतम ! दुसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवा यावत् संख्यातीत प्रायश्चित् पद स्थान को यहाँ प्रथम प्रायश्चित् पद के भीतर
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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